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________________ महावीर की वाणी एक पुस्तक थी । उसमें बसवेश्वर के बारे में पढ़ा तो मन पर एक प्रतिक्रिया हुई । राजा बिज्जल जैन था और बसवेश्वर शैव थे । बसवेश्वर ने अन्तर्जातीय विवाह करवाया और राजा ने उसको व सम्बन्धित व्यक्तियों को कुचल डाला । महावीर का सिद्धान्त था कि जातिवाद को अस्वीकार करो ! बसवेश्वर अस्पृश्यता और जातिवाद को मिटाने के लिए तत्पर थे । जो जैन लोग थे वे कुछ जातिवाद का समर्थन कर रहे थे। मुझे लगा कि कुछ लोगों में जैन धर्म की जो रूढ़ता आ गई थी, उसकी प्रतिक्रिया मात्र बसवेश्वर के मन में थी । रजिस्ट्रार ने बसवेश्वर के कई वाक्य सुनाए। उन्होंने कहा – बसबेश्वर का पहला वाक्य है- ' क्रोध मत करो ।' साथ-साथ मैं भी महावीर की वाणी को दोहराता - 'कोहं असच्चं कुव्वेज्जा ।' उन्होंने कहा – बसवेश्वर का दूसरा वाक्य है- किसी की निन्दा मत करो | मैंने कहा- महावीर का है- "पिट्ठिमंसन खाएज्जा” – दूसरे की चुगली मत करो। एक-एक वाक्य हम बोलते गये। ऐसा लगा कि सिद्धान्तों में कही कोई अन्तर नहीं है । केवल प्रतिक्रिया थी और उस प्रतिक्रिया के कारण सारा का सारा ऐसा हुआ । गया विश्वजनीन सिद्धांत महावीर ने जो सिद्धान्त दिए थे, वे किसी को लक्ष्य में रखकर नहीं दिए थे कि अमुक वर्ग को देना है। सौभाग्य या दुर्भाग्य कुछ भी कहें, जो इतना व्यापक धर्म था, वह एक जाति के रूप में बदल गया यानी जैन एक जाति बन गई। जैन कोई जाति नहीं हो सकती । एक मुसलमान भी जैन हो सकता है, ईसाई भी जैन हो सकता है, हिन्दू भी जैन हो सकता है। क्योंकि जैन कोई जाति नहीं है । आचार्य तुलसी बहुत बार कहते हैं कि 'जैन धर्म' को मैं जन धर्म बनाना चाहता हूं। विनोबाजी ने एक बार बहुत सुन्दर कहा था कि 'जैन धर्म अपने दया, अहिंसा, प्रेम और मैत्री को व्यापक बनाकर दूसरों में खप जाए तो भी वह कोई हानि नहीं होगी ।' यह बहुत सुन्दर और गहरी बात थी । ये विश्वजनीन और सार्वजनीन सिद्धांत तथा इन्हे देखने की अनेकान्तदृष्टि, इस सारे चक्रव्यूह को लेकर हम विचार करें तो कि महावीर का धर्म बहुत व्यापक था । ११९ उदार दृष्टि यह उस समय की बात थी जब किसी से पूछा जाता हमारी मुक्ति कब होगी ? तो कहा जाता - 'सएसए उवट्ठाणे ' मेरे उपस्थान में आ जाओ, तुम्हारी मुक्ति हो जाएगी । पुनः प्रश्न होता कि तुम्हारे सम्प्रदाय में नहीं आए तो ? उत्तर मिलता- 'सिद्धिमेव न अन्नहा' – अन्यथा तुम्हारी सिद्धि नहीं होगी। यानी मेरे सम्प्रदाय में आओ तो तुम्हारी मुक्ति होगी अन्यथा तुम्हारी मुक्ति नहीं होगी। मेरे कुएं का पानी पीओ तो तुमहारी प्यास बुझेगी अन्यथा नहीं बुझेगी । मेरे घर में आओ तो तुम्हें प्रकाश मिलेगा, बाहर रहो तो नहीं मिलेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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