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________________ ११८ समस्या को देखना सीखें आती है जहां शास्त्र की सारी मर्यादाएं समाप्त हो जाती हैं । कल्पातीत के लिये कोई शास्त्र नहीं होता । हम लोग कोई काम करते हैं तो लोग कहते हैं कि शास्त्र में तो ऐसा लिखा है किन्तु कल्पातीत को कोई कहने वाला नहीं है कि शास्त्र में ऐसा नहीं लिखा है। वह स्वयं शास्त्र होता है | कल्पातीत के लिये कोई वचन और नियम नहीं होता । हम लोग तो आज एक स्थान पर एक महीना रह सकते हैं । चातुर्मास में चार महीना रहते हैं । कल्पातीत एक जगह पचास वर्ष रह जाए तो भी उसे कोई कहने वाला नहीं है कि तुम क्यों रहते हो ? सारी मर्यादाएं, सारे शास्त्र, विधान और अनुशासन समाप्त कर स्वयं के अनुशासन से ही वह स्वयं का संचालन करने वाला होता है । यह है राज्यविहीन स्थिति | यह साधना की उत्कृष्ट भूमिका है, उसे कहा गया है—कल्पातीत । महावीर के सिद्धान्त का, क्रिया का, आचार का, साधना की पद्धति का, उन्मुक्तता का जो विकास हैं, वह है कल्पातीत की ओर जाने की प्रक्रिया । इस प्रकार महावीर की दूसरी सबसे बड़ी बात थी—समानता । . प्रामाणिकता __ महावीर की तीसरी बात है—प्रामाणिकता । आज महावीर के धर्म को हमने भुला दिया । आज महावीर के अनुयायी और कुछ करते हैं या नहीं पर महावीर की पूजा जरूर करते हैं । पर आपको आश्चर्य होगा कि महावीर ने कहीं भी शायद अपनी वाणी में नहीं कहा कि किसी की पूजा करो । उपासना धर्म का उन्होंने प्रतिपादन नहीं किया। उन्होंने केवल आचार-धर्म का, नीतिधर्म का प्रतिपादन किया । यदि नैतिकता को, प्रामाणिकता और चरित्र को निकाल देंगे तो महावीर का धर्म समाप्त हो जाएगा । उपासना तो बहुत बाद में चली है । महावीर की वाणी को हमने देखा किन्तु आज तक एक भी वाक्य नहीं मिला कि उपासना की जाए या क्रियाकाण्ड किए जाएं । केवल आचार-धर्म और चरित्र-धर्म ही वहां प्राप्त होता है । मोक्ष के तीन मार्ग बतलाए हैं—सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र । इनमें उपासना की बात कहां है ? महावीर ने स्वतंत्रता, समानता और प्रामाणिकता-ये तीन ऐसे दृष्टिकोण हमारे सामने प्रस्तुत किए थे, जिनके आधार पर महावीर के धर्म को विश्वधर्म का रूप दिया जा सकता है। उनका सारा प्रतिपादन सबके लिये था, विश्व के लिये था । उसमें कहीं भी कोई रेखा या भेद जैसी चीज नहीं थी । बिज्जल और बसवेश्वर आज हमारी कठिनाई यही है कि जैन एक समाज बन गया । जैन एक जाति बन गई और महावीर का धर्म उसमें बंध गया । हम लोग धारवाड़ में कर्नाटक युनिवर्सिटी में गए । वहां के वाइस चांसलर और रजिस्ट्रार हमारे साथ थे । उन्होंने दो-चार-छोटीसी पुस्तकें हमें दीं । हम उन्हे लेकर स्थान पर आए । उनमें 'महात्मा बसवेश्वर' नामक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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