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________________ ११६ समस्या को देखना सीखें हो रहा है । ऐतिहासिक वातावरण में कोई भी सिद्धान्त जो फलित होता है या चालू होता है, उसके पीछे वर्तमान की पृष्ठभूमि होती है । महावीर गणतंत्र के युग में जन्मे थे । वह वैशाली का गणराज्य था । वैशाली का गणराज्य आज के जनतंत्र जैसा नहीं था, फिर भी वहां स्वतंत्रता का वातावरण था । उनमें राजा कोई नहीं था। उनका मुखिया था महाराज चेटक । सभी सामन्त मिलकर राज्य की व्यवस्था करते थे । एक व्यक्ति का शासन नहीं था । उन संस्कारों में पले महावीर ने जो संस्कार दिये, उनमें से उस राज्य को बल मिला, पुष्टि मिली और गणतंत्र का विकास हुआ । स्वतंत्रता महावीर की प्रमुख देन है । समता धर्म का प्रतिपादन ___ महावीर ने दूसरी सबसे बड़ी बात समानता की दी । समता का विकास जितना महावीर के आस-पास हुआ और उन्होंने उस पर जितना बल दिया, वह बहुत ही स्मरणीय है । महावीर के धर्म का नाम क्या था ? आज लोग कहते हैं जैन धर्म । किन्तु एक ऐसा युग था, जब जैन धर्म नाम नहीं था । हमारे पुराने साहित्य में जैन धर्म जैसा नाम नहीं मिलता । महावीर के धर्म का नाम था सामायिक धर्म-समता का धर्म । सूत्रकृतांग सूत्र में बतलाया गया—'समया धम्म मुदाहरे मुणी'-महावीर ने समता के धर्म का प्रतिपादन किया । उसी सूत्र में आगे बतलाया गया—एक चक्रवर्ती सम्राट् दीक्षित होता है और एक चक्रवर्ती के दास का दास, उससे पहले दीक्षित हो जाता है तो चक्रवर्ती का यह धर्म है कि अपने दास का दास जो पहले दीक्षित हो चुका है, के चरणों में वह गिर जाए । वह यह नहीं सोचे कि मैं चक्रवर्ती इसका मालिक था और यह तो मेरे दास का भी दास था । यह सोचना विषमता की बात है । महावीर के शासन में ऐसा नहीं हो सकता। यह समता का प्रतिपादन सामायिक का प्रतिपादन है । कहा जा सकता है—जो समता को नहीं जानता, सामायिक को नहीं जानता, वह महावीर के शासन को नहीं जानता । धर्माचरण में सबसे पहला स्थान सामायिक का है । हर श्रावक के लिए विधान है कि वह सामायिक करे । साधु के लिये विधान है कि साधु वही हो सकता है, जो सामायिक करता है । मुझे नहीं मालूम कि समता की साधना करने वाली सामायिक कौन करता है या नहीं करता है । रूढ़ि तो चलती है । एक मुहूर्त के लिए बैठ जाते हैं, मुंह बाँध लेते हैं, हाथ में प्रमार्जिनी भी ले लेते हैं पर समता की आराधना कितनी करते हैं, इसका पता नहीं । श्रावक के लिये, हर जैन के लिए या महावीर को माननेवाले हर व्यक्ति के लिए यह आवश्यक था कि वह कम से कम दिन में एक या दो बार समता की आराधना करे । प्रश्न है सत्य का आज वह समता की आराधना शायद क्रियाकाण्ड में बदल गई । उसका हार्द छूट गया । विषमता का भाव रखनेवाला कोई भी महावीर के धर्म को समझने वाला नहीं हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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