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________________ महावीर की वाणी ११५ उसी प्रकार आदमी से काम लिया जाता था । हिन्दुस्तान में दास प्रथा चालू थी। आदमी आदमी को खरीद लेता था और दास बना लेता था । आज के नौकर की दास से तुलना नहीं की जा सकती । अगर आप थोड़ी-सी आँख दिखाएं तो आज का नौकर नौकरी छोड़कर जा सकता है, किन्तु दास नहीं जा सकता था । दास इतना अधीन होता कि मालिक एक कुत्ते के साथ जैसा व्यवहार कर सकता है वैसा वह दास के साथ कर सकता था । आज तो शायद वह कुत्ते को मार नहीं सकता किन्तु उस समय वह दास को मार सकता था । उसके नाक-कान काट लेता, जीभ निकाल लेता, जीभ पर शीशा उबालकर डाल देता और उसके टुकड़े-टुकड़े भी कर सकता था । एक आदमी दूसरे आदमी के साथ इतना क्रूर और निर्दय व्यवहार कर सकता था कि उसे कोई कहने वाला नहीं था । वह थी हमारी परतंत्रता की स्थिति । आदमी इतना परतंत्र था कि कुछ बोल भी नहीं सकता था । आज कितना विकास हुआ है ? पराधीनता कितनी समाप्त हो गई है ? आज कोई भी बड़े-से-बड़ा शासक खुला अत्याचार नहीं कर सकता | छिपकर करता है तो भी उसकी इतनी तीव्र आलोचना और भर्त्सना होती है कि शायद उसे अपना त्यागपत्र देने के लिए भी बाध्य होना पड़ सकता है । स्वतंत्रता पर बल आज के जनतंत्र की विशेषता है स्वतंत्रता । हमारे भारतीय साहित्य और इतिहास में स्वतंत्रता पर भगवान् महावीर ने आरंभ से जितना बल दिया, मैं समझता हूं उतना अन्यत्र कम मिलेगा। भगवान महावीर का मूल प्रतिपादन था— 'पुढो सत्ता' यानी हर व्यक्ति का स्वतंत्र अस्तित्व है । तुम्हें दूसरे की स्वतंत्रता को कुचलने का कोई अधिकार नहीं है। बाप को यह अधिकार नहीं कि बेटे पर वह शासन करे । महावीर ने यहां तक कह दियाआचार्य को भी शिष्य पर बल-प्रयोग से शासन करने का अधिकार नहीं है । हमारे यहाँ पर 'इच्छाकारेण' का प्रयोग होता है । महावीर ने कहा- "आचार्य भी शिष्य के लिए 'इच्छाकारण' का प्रयोग करे । तुम्हारी इच्छा हो तो यह काम करो न कि तुम्हें यह करना पड़ेगा । स्वतंत्रता को कितना मूल्य दिया गया है ! एक व्यक्ति महावीर के पास आता और कहता- भगवान् ! मैं यह काम करना चाहता हूं। हजार स्थलों पर आगम सूत्रों में महावीर कहते हैं-'अहासुहं देवाणुप्पिया'--'देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसा सुख हो, वैसा करो ।' कहीं भी नहीं कहा गया- तुम्हें यह काम करना पड़ेगा | महावीर ने व्यक्ति की स्वतंत्रता, उसकी आत्मचेतना और उसके स्वतंत्र अस्तित्व को प्रदीप्त और प्रज्वलित करने में एक ऐसा वातावरण और अवसर दिया कि व्यक्ति अपने सहारे खड़े हो । बैसाखी के सहारे लंगड़ाते हुए चलने का उन्होंने कभी किसी को प्रोत्साहन नहीं दिया । महावीर की प्रमुख देन स्वतंत्रता का घोष जो महावीर ने प्रदीप्त किया, आज के जनतंत्र में वह क्रियान्वित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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