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________________ विशेषणहीन धर्म किन्तु जीवन-संग्राम में जूझने की शक्ति धर्म ही देता है। अपने परिवार और कुटुम्ब के साथ सामंजस्य स्थापित करना धर्म के द्वारा ही सीखा जा सकता है। सामंजस्य स्थापना की मनोवृत्ति धर्म के द्वारा विकसित होती है । आवश्यक है संयम स्कूल कॉलेजों में शारीरिक एवं बौद्धिक विकास होता है किन्तु बौद्धिक विकास के बाद भी कुछ विकास करना है । वह है चेतना का विकास । चेतना के विकास की कल्पना तक बौद्धिक नहीं कर सकता है । चेतना के विकास के सन्दर्भ में ही अणुव्रत की बात कही गई । व्रत आच्छादन है, सुरक्षा है । मकान की छत धूप, वर्षा, सर्दी आदि से सुरक्षा करती है, वैसे ही जीवन एवं मानसिक संघर्ष के समय व्रत ही उसे बचा सकता है। धर्म का मतलब ही है व्रत । यह हमारे जीवन की वह छत है जो हमें अनेक समस्याओं से बचा सकती है । व्रत का मूल है संयम । दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति डा० गांगुली ने कहा कि हमने छात्र जीवन में संयम सीखा, किन्तु आज छात्रों में संयम की बात करें तो उपहास होता है लेकिन संयम आवश्यक है । अणुव्रत का घोष है - संयम ही जीवन है । हमारा जीवन संयमित होना चाहिए। खाने पीने, बोलने, चलने- सबमें संयम अपेक्षित है। गीता, आगम, त्रिपिटक सबमें संयम की बात कही है। धार्मिक वही है, जो संयमी है । आज संयम की बातें कम सुनाई जाती हैं। राजनैतिक दलों के नेता भी असंयम का ही पाठ पढ़ाते हैं । १११ अणुव्रत का दीप छात्रों को धर्म-निरपेक्षता की बात कहकर संयम साधना की शिक्षा से वंचित रखा जा रहा है। शिक्षा की अनेक शाखाएं हैं किन्तु संयम की शाखा नहीं है । यदि यही स्थिति रही और शिक्षालयों में संयम की शिक्षा नहीं दी गई तो उच्छृंखलता और भी बढ़ेगी। यदि यही स्थिति रही तो भारत का रहा-सहा गौरव भी मिटता जायेगा। आज अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, जापान आदि देशों में योग विद्या का अनुसंधान हो रहा है क्योंकि वे भौतिकता के परिणामों से संत्रस्त हो चुके हैं। अच्छा होगा यदि पहले ही हम संयम मार्ग को अपनाकर आनेवाले नये भौतिक परिणामों से बच सकें । शिक्षा देनेवालों का कर्तव्य है कि वे अपने छात्र-छात्राओं को शिक्षा की अन्य बातों के साथ-साथ धर्म और संयम की बात भी बताएं । सारी संस्कृति अंधकार की अमा के बीच से गुजर रही है। इसमें अणुव्रत ही आलोक देगा और मानसिक शान्ति भी । घोर अमावस्या की रात्रि में आज अणुव्रत दीप की आवश्यकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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