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________________ अहिंसा वीर पुरुष अहिंसा के राजपथ पर चल पड़े हैं। जो धर्म मोक्ष के अनुकूल है, उसे अनुधर्म कहते हैं; वह धर्म अहिंसा है । कष्टों के सहन को भी वीतराग ने धर्म कहा है। किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए-यही ज्ञानियों के ज्ञान-वचनों का सार है। अहिंसा, समता--सब जीवों के प्रति आत्मवत्-भाव-इसे ही शाश्वत धर्म समझो।' अहिंसा की परिभाषा अहिंसा को भगवान् ने जीवों के लिए कल्याणकारी देखा है। सर्व जीवों के प्रति संयमपूर्ण जीवन-व्यवहार ही अहिंसा है ।। अहिंसा का स्वरूप पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति-ये सब अलग-अलग जीव हैं । पृथ्वी आदि हरेक में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व के धारक अलग-अलग जीव हैं। ___ 'उपरोक्त स्थावर जीवों के उपरान्त त्रस प्राणी हैं, जिनमें चलने-फिरने का सामर्थ्य होता है। ये ही जीवों के छह वर्ग हैं। इनके सिवा दुनिया में और जीव नहीं हैं।' १. आचारांग ११११३६ : पणया वीरा महावीहिं । २. सूत्रकृतांग १।२।१।१४ : अविहिंसामेव पव्वए, अणुधम्मो मुणिणा पवेदितो । ३. वही, १११।४।१० : एवं खु नाणिणो सारं, जं न हिंसई किंचण । अहिंसा समयं चेव, एयावन्तं वियाणिया ।। ४. दशवैकालिक ६।६ : अहिंसा निउणं दिट्ठा, सव्वभूएसु संजमो। ५. सूत्रकृतांग १११११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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