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________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन १८७ होगा~जो व्यक्ति स्व-पर के भेदभाव में ऊंचा उठा हुआ है, जिसके सामने पवित्र लक्ष्य है, जिसका आत्म-बल विकसित है और जो निर्भय है, वही अहिंसक बन सकता है। यह अहिंसा की भूमि है। अब तक उसी की चर्चा हुई है । अहिंसा की कसौटी क्या है ? अहिंसा का तेज कहाँ निखरता है ? इस पर भी कुछ ध्यान दे लें। __एकान्तवास में आदमी अहिंसक बन सकता है किन्तु अहिंसा की परख वहां नहीं हो सकती। इसका क्षेत्र है-सहवास। सबके साथ रहकर या सबके बीच रहकर जो अहिंसक रहता है, वहां उसकी परख होती है।। एक साथी क्रोधी है, दूसरा अभिमानी है, तीसरा मायावी है और चौथा लोभी है-उनके साथ कैसे बरता जाए? (क) साथी बात-बात में गुस्सा करता है, अंट-संट बोलता है, बकवास करने में भी नहीं चूकता, समय पर गालियां भी सुना देता है। 'शठे शाठ्यं समाचरेत्'-इसका मतलब है-हिंसा। सामने के व्यक्ति को अहिंसक रहना है और साथी को भी साथ लिए चलना है। अगर वह शान्त भाव से सब कुछ सहता चला जाता है तो लोग उसे कायर बताते हैं । अब वह क्या करे? __ अहिंसक में चैतन्य होना चाहिए। निर्जीव अहिंसा दीनता का ही दूसरा रूप है। अहिंसक क्रोधी के आवेग को सहे अवश्य, किन्तु दीन बनकर नहीं। क्रोधी को यह भान होते रहना चाहिए कि अहिंसक में प्रतिकार करने की शक्ति है, फिर भी वह अपने धर्म की रक्षा के लिए सब कुछ सहता है। क्रोधी एकपक्षीय क्रोध आखिर कब तक करेगा? उसे क्रोध करने का पूरा अवसर मिलता है तो निश्चित समझिए उसका क्रोध खतरे में है । क्रोध क्रोध से बढ़ता है। क्रोध के बदले क्षमा मिलती है, तब वह स्वयं पछतावे में बदल जाता है। ऐसे चलते-चलते क्रोध स्वयं निस्तेज हो जाता है और क्षमा उस पर विजय पा लेती है। (ख) साथी अभिमानी है, वह चाहता है-पूजा, प्रशंसा और गुणानुवाद । अहिंसक को यह न रुचे । वह उसका उत्कर्ष न साध सके, तब संघर्ष होता है। उसकी आत्म-सन्तुष्टि अथवा संघर्ष को टालने के लिए क्या अहिंसक चलती बाते करे ? अगर न करे तो उसका परिणाम होता है-आपसी अनबन। इस स्थिति में वह कौन-सा मार्ग चुने ? पहला या दूसरा? प्रत्येक व्यक्ति में न्यूनाधिक मात्रा में विशेषताएं होती हैं। अहिंसक उन्हें सामने रखकर चले। निःसंकोचतया उन्हें प्रकाश में लाए। ईर्ष्या न करे । एक विशेषता बताकर आदमी दस कमियां बताए तो वे अखरती नहीं, पर कभीकभी अखर भी जाती हैं। केवल भूलें ही भूलें सामने रखी जाएं तो सुनने वाला उकता जाता है या पहल में ही चिढ़ जाता है। सामान्यतया अपनी प्रशंसा सुनने में हरेक ब्यक्ति को दिलचस्पी होती है। हम उसकी विशेषता बताएंगे तो वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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