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________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन अल्प जीवन के व्यवहार सात्विक होते हैं, हैं, तव महा-हिंसा और महा - परिग्रह प - हिंसा और अल्प-परिग्रह वाले होते तुलना में व्यवहार दृष्टि के अनुसार उन्हें अहिंसक मान लिया जाता है । यह अल्प - हिंसा में अहिंसा का आरोपण है, शुद्ध अहिंसा नहीं है । महात्मा गांधी के अनुसार यह मन फुसलाने जैसा है । वे लिखते हैं " जैसा कि निरामिष आहारी वनस्पति खाने में हिंसा है—यह जानता हुआ भी निर्दोषता का आरोपण कर मन को फुसलाता है ।" १४४ I अहिंसा के व्यापक रूप में गृहस्थ के हिंसामय कर्तव्यों की सीमा होती है, अनावश्यक और प्रमाद - विहित कार्य छूटते हैं । मुनि का मार्ग और भी संकड़ा बन जाता है । वे स्वयं कोई भी हिंसामय कार्य नहीं कर सकते, इससे आगे – हिंसामय कार्य का पथ-दर्शन भी नहीं कर सकते । महात्मा गांधी राजनीतिक दायित्व से मुक्त नहीं थे, फिर भी उनकी दृष्टि में हिंसा का समर्थन न करने और यथासम्भव हिंसा से बचने की वृत्ति सुरक्षित है । 'हिंसा के मार्ग में किसी का भी नेतृत्व करने में मैं असमर्थ हूं । यह तो हरएक क्षण में किसान अनुभव करता है कि खेती के लिए छोटे-छोटे जीवों का नाश करना अनिवार्य है । इसके आगे आकर इस वस्तु को ले जाना मेरी शक्ति के बाहर की बात है। हिंसा करने से जिस अंश तक बचना संभव हो, उस अंश तक बचना सबका धर्म है।" की 'जीवो जीवस्य जीवनम्' – जीव जीव का जीवन है, पाणिपाणिकिलेसंति' - प्राणी प्राणी को मारता है अथवा 'मच्छगलागल'- - एक बड़ी मछली छोटी मछलियों को खा जाती है, वैसे बड़े जीव छोटे जीवों को भख लेते हैं – ये तथ्योक्तियां हैं। मनुष्य को खाना पड़ता है, पीना पड़ता है । इसमें शाक, सब्जी, धान, पानी, अग्नि, हवा के जीवों का वध होता है । इनके योग से द्वीन्द्रिय आदि बड़े जीवों की भी हिंसा होती है । यह उनकी आवश्यकता है, मजबूरी है, ऐसा किए बिना जीवन निर्वाह नहीं हो सकता । किन्तु मनुष्य में एक कमजोरी छिपी हुई होती है । वह हर जगह सच्चाई की ओर बढ़ने में रुकावट डालती है । इसीलिए एक सिद्धान्त बना लिया गया कि जो वस्तुएं मनुष्य के जीवन- निर्वाह के लिए नितान्त आवश्यक हैं, उनमें हिसा कैसी ? यह सिद्धान्त व्यापक बन गया किन्तु वस्तुस्थिति कुछ और है । दुनिया स्वार्थी है ऐसा किए बिना उससे रहा नहीं जाता, यह दूसरी बात है पर सच्चाई और कमजोरी एक नहीं, दो चीजें हैं । १. व्यापक धर्म - भावना, पृ० ३०८ २. अहिंसा, पृ० ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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