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प्रवचन ७
संकलिका
• लोय च फास विफफंदमाणं (आयारो, ४१३७) • जे पज्जवजातसत्यस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयणे । • जे असस्थस्स खेयण्णे से पज्जवजातसत्थस्स खेयण्णे ॥ (आयारो, ३५१७)
• देख, यह लोक चारों ओर से प्रकंपित हो रहा है। ० जो विषयों के विभिन्न पर्यायों में होने वाली आसक्ति के अन्तस्
को जानता है, वह अनासक्ति के अन्तस् को जानता है । जो अनासक्ति के अन्तस् को जानता है, वह विषयों के विभिन्न पर्यायों में
होने वाली आसक्ति के अन्तस् को जानता है । ० द्रव्य परिणामिनित्य होता है । ० दो प्रकार के स्पंदन होते हैं
० स्वाभाविक स्पंदन-आत्मा में चैतन्य के स्पंदन । ० निमित्तज स्पंदन-कर्म या सूक्ष्म शरीर के स्पंदन । प्राण या
तैजस के स्पंदन । चैतन्य के स्पंदन सूक्ष्मतम । ० कर्म के स्पंदन सूक्ष्मतर । प्राण के स्पंदन सूक्ष्म । ० स्थूल शरीर के स्पंदन स्थूल । मूर्छा या मोह के स्पंदन सबसे अधिक होते हैं । • श्वास के स्पंदन से ऊर्जा उत्पन्न होती है : घार्षणिक विद्युत् तथा
मस्तिष्क में धारावाही विद्युत् । जब तक जीवनी शक्ति के स्पंदन हैं तब तक प्राणी जीता है। वासना का प्रतिपक्षी संवेदन० ऋण और धन विद्युत् का योग । ० प्राण और अपान का योग । जीभ की ऋण और तालु की धन विद्युत् का योग ।
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