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________________ प्रस्तुति बीज को वृक्ष बनने के लिए लंबी यात्रा करनी पड़ती है । बीज यदि बीज ही रहे तो विश्व को वह उपलब्ध नहीं होता जो वृक्ष से हो सकता है । पत्र, पुष्प, फल, छाया और इंधन-ये सब बीज के विकास से ही संभव होते हैं । चेतना को भी विकास के शिखर तक पहुंचाने के लिए बहुत लंबी यात्रा करनी होती है । यदि चेतना सुप्त रहे तो उसे वह उपलब्ध नहीं हो सकता, जिसकी हम अपेक्षा करते हैं । मैत्री, शान्ति, सौहार्द, सद्भावना, समता और समन्वय-ये सारे तत्त्व जागृत चेतना से ही फलित हो सकते हैं। चेतना-जागरण के लिए ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा करनी होती है। ऊर्जा का प्रवाह नीचे की ओर जाता है तब काम-चेतना का विकास होता है । ज्ञान-चेतना का विकास ऊर्जा की ऊध्र्वयात्रा होने पर ही हो सकता है । ध्यान का अभ्यास ऊर्जा को ऊपर की ओर ले जाने का अभ्यास है। प्रस्तुत पुस्तक में ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा के कुछ पहलू स्पष्ट किये गए हैं। __ समय-समय पर प्रेक्षाध्यान के शिविर आयोजित होते हैं । उनमें ध्यान के प्रयोग चलते हैं और साथ-साथ ध्यान के विषय में चर्चा भी चलती है । वही चर्चा इस पुस्तक में संकलित है । अक्टूबर १९७७, मार्च १९७८ तथा जून १६७८ के तीन शिविरों की चर्चा इसमें संगृहीत है । ध्यान के प्रयोग से व्यक्ति अपने-आपसे परिचित होता है। अपने भीतर होने वाली घटनाओं से सीधा सम्पर्क स्थापित करता है। ध्यान विषयक चर्चा उस कार्य में बहुत सहयोग करती है। शरीरशास्त्र का अध्ययन एक डॉक्टर के लिए भी जरूरी है और एक ध्यान-साधक के लिए भी जरूरी है । प्रयोजन दोनों का भिन्न हो सकता है। प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करने वाले व्यक्ति के लिए शरीर-बोध इसलिए जरूरी है कि वह शरीर के प्रत्येक भाग को देख सके । शरीर की प्रत्येक कोशिका का चेतना के द्वारा स्पर्श कर सके और उसे सक्रिय बना सके। मानसशास्त्र का अध्ययन एक मनोवैज्ञानिक के लिए जितना आवश्यक है, उतना ही ध्यान-साधक के लिए आवश्यक है। प्रेक्षाध्यान का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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