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● संसयं परिजाणतो, संसारे परिण्णाते भवति ।
संसयं अपरिजाणतो, संसारे अपरिण्णाते भवति || [ आधारो, श]
• fazàfo azz afzoong | [ aardt, & 15]
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एस तिष्णे मुत्ते विरए वियाहिए। [आयारो, ६ ६ ६ ]
● जो संशय को जानता है, वह संसार को जान लेता है । जो संशय को नहीं जानता, वह संसार को नहीं जान पाता ।
• मुमुक्षु समत्व की प्रज्ञा से राग-द्वेष की श्रेणी को छिन्न कर डाले । • वह मुमुक्षु तीर्ण, मुक्त और विरत कहलाता है ।
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प्रवचन ४
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शुद्ध चेतना की पहली किरण - दृष्टि की स्पष्टता ।
शुद्ध चेतना की दूसरी किरण - सहज सुख का अनुभव | ज्योति का अनुभव ।
चेतना की तीसरी किरण - सहज सुखानुभूति की निरन्तरता । अखण्ड ज्योति का प्रकटीकरण । शुद्ध चेतना की चौथी किरण - सहज सुख के मूल स्रोत की उपलब्धि । अखण्ड ज्योति के मूल स्रोत की उप
संकलिका
सुनकर, जानकर या सहज ही चेतना का कोई कोना भंकृत हो उठता है । अपने अस्तित्व की पहली किरण फूट पड़ती है ।
शुद्ध
लब्धि |
व्यक्तित्व और अस्तित्व का भेद होने पर व्यक्ति का रूपान्तरण |
सुख-दुःख का जोड़ा अच्छा लगता था, अब केवल सुख अच्छा लगता है ।
कर्मफल भोगता हुआ अपने को सुखी या दुःखी अनुभव करता था, अब नहीं, तटस्थ रहता है ।.
चैतन्य का अनुभव कभी-कभी, अब चैतन्य का सतत अनुभव |
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