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किसने कहा मन चंचल है
कर चुका है वह कहीं आसक्त नहीं होगा। वह मार्ग में कभी आसक्त नही होगा । वह मंजिल तक पहुंचेगा किन्तु पथ में कहीं आसक्त नहीं होगा। वह मानेगा कि मार्ग मात्र चलने के लिए है। उसमें आसक्त होने जैसी बात नहीं है।
चौथा परिणाम है-अनन्त करुणा । क्रूरता समाप्त हो जाएगी । अनन्त मैत्री का विकास होगा।
पांचवां परिणाम है-सत्य के प्रति समर्पण । वह साधक सदा के 'लिए सत्य के प्रति समर्पित हो जाएगा। फिर वह असत्य के लिए कोई काम नहीं करेगा।
विवेक-जागरण के ये पांच फलित हैं।
हमारी यात्रा का पहला ज्योतिस्तंभ है-विवेक जागरण । अस्तित्व. दर्शन का पहला साधन है-सम्यग्दर्शन । सम्यक का दर्शन अर्थात् विवेकचेतना का जागरण ।
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