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________________ २८८ किसने कहा मन चंचल है ही पैनी क्यों न हो, वह परमाणु को नहीं तोड़ सकती, नहीं काट सकती। चश्मा कितने ही नम्बर का क्यों न हो, उससे परमाणु नहीं देखा जा सकता। ये सब स्थूल उपकरण हैं । इनसे सूक्ष्म सत्य नहीं पकड़ा जा सकता। समूचे वैज्ञानिक जगत् की सफलता का आधार है-सूक्ष्म यन्त्रों का निर्माण। इसे दर्शन की भाषा में अतीन्द्रिय यन्त्रों का निर्माण भी कहा जा सकता है। जो बातें इन्द्रियों द्वारा नहीं जानी जातीं, वे इन यन्त्रों के द्वारा जानी जा सकती हैं । हम क्यों न मानें कि ये अतीन्द्रिय यंत्र हैं । अतीन्द्रिय यन्त्र का अर्थ हैइन्द्रियों से परे काम करने वाले यन्त्र । इन्द्रिय-चेतना के द्वारा जिन सूक्ष्म सत्यों का ग्रहण नहीं होता वे इन अतीन्द्रिय उपकरणों के सहयोग से गृहीत हो जाते हैं। ___ अतीन्द्रिय का अर्थ परम सत्य की उपलब्धि नहीं होता। अतीन्द्रियचेतना का अर्थ परम सत्य की उपलब्धि की चेतना ही नहीं होता। अतीन्द्रियचेतना परम सत्य की उपलब्धि कराने वाली ही होती है। किन्तु अतीन्द्रिय. चेतना प्रारंभिक-चेतना भी होती है । हिमालय केवल शिखर ही नहीं होता। तलहटी भी हिमालय होता है। अतीन्द्रिय-चेतना केवल शिखर ही नहीं होती वह तलहटी भी होती है। अतीन्द्रिय-चेतना का प्रारंभिक रूप यह है जो इन्द्रिय के द्वारा नहीं जाना जाता वह अतीन्द्रिय के द्वारा जान लिया जाता आज की स्थिति से मुझे आश्चर्य भी होता है और खेद भी होता है। आश्चर्य इसलिए होता है कि आज का दार्शनिक दोनों से वंचित हो गया। न वह पूरा दार्शनिक ही रहा और न वह पूरा वैज्ञानिक ही रहा । न उसके पास प्राचीन दार्शनिकों की चेतना के जागरण की प्रक्रिया है, जिसके द्वारा सूक्ष्म चेतना का जागरण कर सूक्ष्म सत्यों को देख सके और न उसके पास सक्ष्मतम वैज्ञानिक उपकरण हैं, जिनके द्वारा वह सूक्ष्म सत्यों को देख सके। वह दोनों से वंचित है । अब उनके लिए केवल तर्क ही शेष रहा है। वह एक का समर्थन करे और दूसरे का असमर्थन । हम यह कह सकते हैं कि आज का दार्शनिक एक वकील बन गया है। उसे दार्शनिक कहने की अपेक्षा एक वकील कहना चाहिए । वकील को किसी साधना की आवश्यकता नहीं होती। उसे केवल कानून की पुस्तकें पढ़ना पर्याप्त होता है । वह उन पुस्तकों के आधार पर अपनी तार्किक मेघा के द्वारा काट-छांट करता रहे । सूक्ष्म नाम या अतीन्द्रिय ज्ञान को विकसित करने की कोई अपेक्षा नहीं है। आज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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