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प्रवचन २७
| संकलिका
• प्रेक्षा के अभ्यास से
• शरीर की सक्रियता बढ़ती है। ० चैतन्य केन्द्र सक्रिय होते हैं। • द्रष्टाभाव का विकास होता है। • पदार्थ से निकट का सम्बन्ध स्थापित होता है और उसके आन्त
रिक स्वरूप को जानने-समझने का अवसर मिलता है। अनुप्रेक्षा के अभ्यास से• यथार्थ की अनुभूति होती है । • सामाजिक सम्पर्कों से पनपने वाली मूच्र्छा को तोड़ने और मलों ___ की सफाई का अवसर मिलता है।
० मन की निर्मलता का विकास होता है। • एकाग्रता के अभ्यास से
० मन की शक्ति का विकास होता है। • लेश्या-ध्यान के अभ्यास से
• निर्मल भावों का निर्माण होता है। • दर्शन-मूलक दर्शन-आत्म-परिष्कार, समन्वय, मैत्री। • तर्क-मूलक दर्शन-विवाद, संघर्ष, जय, पराजय । • सूक्ष्म-सत्य और स्थूल-सत्य को जानने के साधन-सूक्ष्म और स्थूल ।
आज के दार्शनिक के पास केवल तर्क, जो पहुंचता नहीं किन्तु उलझाता है।
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