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________________ मानसिक स्वास्थ्य २८१ स्वास्थ्य । दोनों पर्यायवाची हैं । आयुर्वेद में शरीर के स्वास्थ्य को ही स्वास्थ्य नहीं माना है, मन के स्वास्थ्य को भी स्वास्थ्य माना है। एक प्रश्न आया कि स्वस्थ कौन है ? इसके उत्तर में कहा गया 'समाग्निः समदोषश्च, समधातुमलक्रियः । प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः, स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥' -जिस व्यक्ति के शरीर की धातुएं सम हैं, विषम नहीं हैं, अग्नि सम है, विषम नहीं है, दोष और मल की क्रिया भी सम है, वह स्वास्थ्य के ये लक्षण हैं । जिसकी इंद्रिया उच्छंखल नहीं हैं, जिसका इन्द्रियों पर नियंत्रण है, जो प्रसन्न आत्मा है वह स्वस्थ्य है जिसकी शरीर की धातुएं और मलदोष सम हैं किन्तु मन की प्रसन्नता नहीं है, निर्मलता नहीं है तो वह व्यक्ति स्वस्थ नहीं हो सकता । जिसका इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं है वह स्वस्थ नहीं हो सकता । स्वस्थ रहने के लिए शरीर की क्रियाओं का ठीक होना और मन की प्रसन्नता होना-दोनों आवश्यक हैं । मन की प्रसन्नता का अर्थ हर्ष नहीं है । जहां हर्ष है वहां शोक है। जहां शोक है वहां हर्ष है। केवल हर्ष या केवल शोक नहीं होता। यह एक जोड़ा है, द्वन्द्व है। मन की निर्मलता इससे भिन्न वस्तु है। 'निर्मलं गगनं'-आकाश निर्मल है। इसका अर्थ है कि आकाश बादलों से रहित है, निर्मल है । जो आकाश बादलों से व्याप्त है, रेत और धूल से व्याप्त है, वह निर्मल नहीं होता। जो इन सबसे शून्य है वह निर्मल होता है। जिसमें हर्ष और शोक-दोनों नहीं हैं वह है मन की निर्मल अवस्था, मन की प्रसन्न अवस्था। शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य को नहीं तोड़ा जा सकता । मानसिक स्वास्थ्य और समता को भी नहीं तोड़ा जा सकता। अपने-आप से प्रश्न पूछे और अपने-आप समाधान 'प्राप्त कर लें। मनोविज्ञान ने मानसिक स्वास्थ्य के परीक्षण की कसौटियां भी दी हैं । 'पर्सनेलिटी पेरामीटर' की पद्धति से व्यक्तित्व को अंकित करने और मानसिक स्वास्थ्य को जांचने के सूत्र दिए हैं, कुछ बिन्दु प्रस्तुत किए हैं । पहला पेरामीटर है-वेश-भूषा। व्यक्ति कैसे कपड़े पहनता है। वह अपने प्रति कितना सजग है। वह कपड़ों को किस चतुराई से धारण करता है। कपड़े पहनने की विधि से मन की प्रसन्नता नापी जा सकती है। दूसरा पेरामीटर है-व्यवहार । व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में कैसा व्यवहार करता है ? कभी संतुलित व्यवहार और कभी असंतुलित व्यवहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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