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________________ मानसिक स्वास्थ्य मानसिक स्वास्थ्य की साधना का पांचवां सूत्र है—अपने-आपको यथार्थरूप में प्रस्तुत करना । समाज के सन्दर्भ में व्यक्ति अपने-आपको यथार्थरूप में प्रस्तुत करना नहीं चाहता । वह अपने-आपको बड़े के रूप में प्रस्तुत करता है जिससे कि उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़े और वैवाहिक संबंध सुविधापूर्वक हो सके । किन्तु जब यथार्थं सामने आता है तब बहुत कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं । तब मन-मुटाव होता है, लड़ाइयां होती हैं, मानसिक अशांति होती है और वह वर्षों तक बनी रहती है । सुना है, एक व्यक्ति अपनी लड़की के लिए दूसरे गांव में लड़का देखने गया। वहां पहले से ही षड्यंत्र रचा रखा था । एक कमरे से रुपयों के टनकार की आवाज आ रही थी । वह टनकार क्षण भर के लिए भी बन्द नहीं हो रही थी । लड़की वालों ने सोचा, कितना धन है इनके पास ? कितने समय से ये रुपये गिन रहे हैं ? बहुत संपन्न लगते हैं । विवाह की बात तय हो गयी । ठीक समय पर विवाह हो गया । फिर वास्तविकता का पता चला। दोनों परिवार वाले एक-दूसरे से कट गए । संबंधों में दरारें पड़ गयीं । सामजिक सन्दर्भ में अपने आपको अयथार्थरूप में प्रस्तुत करना अपनेआपको धोखा देना है दूसरे को धोखा देना है। इससे न जाने कितनी कठिनाइयां और समस्याएं पैदा हो जाती हैं । प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन के हर क्षेत्र में यथार्थ को छिपाता है और अयथार्थ को प्रस्तुत करता है । यह द्वैध है । जो सुन्दर नहीं है, वह अपने को सुन्दर दिखाने का भरपूर प्रयत्न करता | वह सभी उपाय काम में लाता है । जितनी भी प्रसाधन की सामग्री है वह उपयोग करता है । पर वास्त विकता जब खुलती है तब नग्न सत्य सामने आता है । सामने वाला व्यक्ति भी असंतुष्ट होता है और स्वयं भी असंतुष्ट होता है । एक व्यक्ति था । वह अनेक बार संपर्क में आता । वह सदा यहीं कहता - " मैंने जीवन में एक व्रत ले रखा है कि मैं जैसा हूं वैसा ही दीखूं, वैसा ही अपने-आपको प्रस्तुत करूं । ऐसा न हो कि मैं हूं तो और कुछ और प्रस्तुत कुछ और ही करूं अपने व्यक्तित्व पर ऐसा परदा डाल दूं कि देखने वाले को वह और किसी रूप में दीखे । यह धोखा है ।" जो व्यक्ति सामाजिक संदर्भों में अपने-आपको यथार्थ रूप में प्रस्तुत करता है वह मानसिक दृष्टि से बहुत स्वस्थ और शक्तिशाली होता है । अयथार्थ रूप में वही व्यक्ति अपने को प्रस्तुत करता है जो मन से दुर्बल होता है । ऐसा व्यक्ति अपनी Jain Education International २७६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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