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________________ किसने कहा मन चंचल है ये पांचों व्यक्तित्व स्पष्ट हैं । इनकी प्रतिष्ठापना के लिए बहुत तर्क अपेक्षित नहीं है | बहुत सरलता से इन्हें समझाया जा सकता है । व्यक्ति पर माता-पिता का समाज का, शरीर का और मन का प्रभाव होता है । ये ऐसी उजली, सफेद बातें हैं कि इनको देखने के लिए दीया जलाने की आवश्यकता नहीं होती । जो स्वयं में स्पष्ट है उसके लिए प्रकाश आवश्यक नहीं है । हमारे व्यक्तित्व का छठा खंड है - परामानसिक व्यक्तित्व | यह छिपा हुआ है, तमस् में है, अंधेरे में है । प्रकट नहीं है । किन्तु यह ऐसा व्यक्तित्व है जिसके हाथों में दूसरे पांचों व्यक्तित्वों की नकेल है । वह चाहे तो भौगोलिक आनुवंशिक, सामाजिक, शारीरिक और मानसिक – सभी प्रभावों को नष्ट कर सकता है । इसके हाथ में है— बनाना और बिगाड़ना, सृष्टि और संहार । प्रलय और निर्माण - सब कुछ इसके हाथ में है । यह भीतर छिपा रहकर इस प्रकार संचालन कर रहा है कि सब इसके इशारे पर नाच रहे हैं । वर्तमान वैज्ञानिकों और मानसशास्त्रियों ने बहुत बड़ी क्रांति की । उन्होंने कहा - " चेतन मन के स्तर पर या भौतिक स्तर पर जो घटित हो रहा है वह अवचेतन मन का प्रतिबिम्ब है । यह भौतिक जगत् में बहुत बड़ी घटना है जो समूचे सिद्धान्त को बदल देती है। जहां केवल शरीर या स्थूल मन के आधार पर सारी अवधारणाएं चलती हैं, उस स्थिति में यह प्रतिपादन सामने आया कि व्यक्ति जो स्वप्न लेता है, व्यक्ति के मन में जो वासनाएं उभरती हैं, जो वासनाएं हैं, वे सब दमित वासनाएं स्वप्न में उभरती हैं और जागते में उभरती हैं । -- मन के दो स्तर हैं - चेतन मन का स्तर और अवचेतन मन का स्तर । अवचेतन मन का स्तर अत्यन्त शक्तिशाली है । अवचेतन मन उससे कुछ अवदान प्राप्त कर अपना कार्य चलाता है । जितनी घटनाएं घटित होती हैं, हमारे जितने आचरण हैं, उन सबका स्रोत है-अवचेतन मन । कर्मशास्त्र ने हजारों वर्षों पूर्व इस विषय का प्रतिपादन किया था कि व्यक्ति जो कुछ करता है उसके पीछे कर्मक प्रेरणा होती है । 'कम्मुणा जायए' - कर्म से ही होता है । यही प्रेरक तत्त्व है । हमारे सभी आचरणों का मूल स्रोत है कर्म । जो कर्म संचित हैं, जो कर्म अस्तित्व मे हैं, सत्ता में हैं और जब वे उदय में आते हैं, जब उनका विपाक होता है तब नाना प्रकार की घटनाएं घटित होती हैं । सारा का सारा व्यक्तित्व उनके आधार पर चलता है । कर्मशास्त्र की भाषा में जिसे हम कर्मों का विपाक कहते हैं, उसे ही मनोविज्ञान की भाषा २६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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