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व्यक्तित्व का नव निर्माण
हमारा व्यक्तित्व छह खंडों में विभाजित है । ये छह कर्मशास्त्रीय अवधारणा के आधार पर होते हैं । कर्मशास्त्र के अनुसार मैंने इन छह खंडों पर व्यक्तित्व को देखने का प्रयत्न किया है । ये छह खंड हैं :
१. भौगोलिक व्यक्तित्व
४. शारीरिक व्यक्तित्व ५. मानसिक व्यक्तित्व
६. परामानसिक व्यक्तित्व |
२. आनुवंशिक व्यक्तित्व
३. सामाजिक व्यक्तित्व
सबसे पहला है - भौगोलिक व्यक्तित्व | हमारा एक व्यक्तित्व होता है जिसके निर्माण में भूगोल का बहुत बड़ा अनुदान होता है । एक व्यक्ति भारत में जन्म लेता है । दूसरा व्यक्ति यूरोप में जन्म लेता है । एक व्यक्ति उत्तर में जन्म लेता है । दूसरा व्यक्ति दक्षिण में जन्म लेता है । दोनों में अपनी-अपनी विशेषता होती है । यह विशेषता भौगोलिक है । हम व्यक्ति के वर्ण, रहन-सहन आदि को देखकर जान लेते हैं कि यह अमुक देश का है । अमुक प्रान्त का है । उसकी क्षेत्रीय विशिष्टता उसके भौगोलिक व्यक्तित्व को उजागर करती है |
आनुवंशिकता का भी व्यक्तित्व में बहुत बड़ा अवदान होता है । आनुवंशिकता का भी एक पूरा व्यक्तित्व बन जाता है। माता-पिता के गुणदोष संतान में सक्रांत होते हैं। माता-पिता के अवयव, अवयवों के गुण-दोष संतान में संक्रमित होते हैं । संतान माता-पिता का मिश्रण है । उनमें तीन अवयव माता के और तीन अवयव पिता के होते हैं । मनुष्य मनुष्य जैसा होता है, वह हाथी जैसा नहीं होता। इसका कारण है - आनुवंशिकता । यह आनुवंशिकता ही यह निश्चित करती है कि मनुष्य मनुष्य के आकार का ही होगा, हाथी के आकार का नहीं। मानव को मानव आकार मिलता है, मांस पेशियां मिलती हैं, अस्थि-संस्थान, मस्तिष्क आदि मिलते हैं, यह सब आनुवंशिकता के कारण मिलता है । हमारे व्यक्तित्व का एक खंड है- आनुवंशिक व्यक्तित्व |
व्यक्तित्व का तीसरा खंड है- सामाजिक व्यक्तित्व |
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