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प्रवचन २३
| संकलिका
• मन की शक्ति जागे और द्वन्द्व-चेतना रहे, तब दुःख अधिक । • द्वन्द्व-चेतना से तनाव । तनाव से मानसिक विकार और रोग । • मानसिक चिकित्सा का मुख्य अंग है-तनाव का अल्पीकरण । • समता के तेल में जागति की बाती निरन्तर जले। • द्वन्द्व-चेतना आवेग के लिए उर्वरा । सारी समस्याएं यहीं अंकुरित
होती हैं । सारे दुःख यहीं पनपते हैं । • द्वन्द्वातीत चेतना की तीन प्रेरणाएं
१. मनुष्य दुःख और समस्या नहीं चाहता । २. मानव मस्तिष्क में भौतिकता के परे की चाह । ३. स्वतन्त्रता की अनुभूति ।। • द्वंद्वातीत चेतना का नाम है-सामायिक । • अन्य चाहों से बड़ी चाह है--निर्द्वन्द्व चेतना की उपलब्धि करना।
सामायिक के फलित । • मन की गति पर अंकुश । • समस्याओं की समाप्ति । ० समस्यामुक्त, दुःखमुक्त जीवन का प्रारंभ ।
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