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________________ चेतना का तीसरा आयाम २२७ हमने मन की एक सीमा बना ली है। हम उसके बाहर जाकर देखना नहीं चाहते । इस संकुचित दायरे को तोड़े बिना क्षमताओं का विकास नहीं हो सकता । स्मृति, कल्पना और चिन्तन-इन तीनों वलयों को तोड़े बिना हम अपनी मानसिक क्षमताओं का अंकन नहीं कर सकते । मन की शक्ति के द्वारा दूसरों के विचार जाने जा सकते हैं, दूसरों के विचारों को प्रभावित किया जा सकता है, संदेश भेजा जा सकता है, संदेश मंगाया जा सकता है । मन की शक्ति से पौधों को भी प्रभावित किया जा सकता है। जिस प्रकार चेतन को प्रभावित किया जा सकता है वैसे ही अचेतन को भी प्रभावित किया जा सकता है । मन से पदार्थ परिचालित किए जा सकते हैं, स्थानान्तरित किए जा सकते हैं; एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जा सकते हैं। इस प्रक्रिया में केवल मन की शक्ति ही काम करती है। किसी को छूने की जरूरत नहीं है । जब मन जागृत हो, अभ्यस्त और प्रशिक्षित हो, तो ये कार्य सहज-सरल हो जाते हैं। प्रश्न होता है कि मन को प्रशिक्षित और अभ्यस्त कैसे किया जा सकता है ? उसको जागृत करने का उपाय क्या है ? मन को जागृत करने का एकमात्र उपाय है-जीवन की दिशा को बदलना, जीवन की गति को बदलना । श्वास को बदले बिना जीवन की दिशा को नहीं बदला जा सकता । श्वास की गति को बदले बिना जीवन की गति को नहीं बदला जा सकता । हमारी सारी शक्तियों का प्रतिनिधि हैश्वास, प्राण । सारा जीवन प्राण के द्वारा संचालित है। हम प्राणी हैं। प्राण हैं; इसलिए हम जीवित हैं। निष्प्राण का अर्थ है मृत । जब तक प्राण का दीप जलता है तब तक सब कुछ है। हम ऐसा प्रयत्न करें जिससे यह दीप सदा जलता रहे । ऐसे दीप इस दुनिया में जले हैं जो शताब्दियों तक जलते रहे हैं । एक दीप वह होता है जो घण्टा-भर जलकर बुझ जाता है । एक दीप वह होता है जो दो-चार, दस-बीस दिन जलकर बुझ जाता है ! तेल समाप्त हो जाता है, बाती जल जाती है, दीप बुझ जाता है। किन्तु मनुष्य ने क्या नहीं खोजा ! उसने ऐसे दीप जलाए जो सैकड़ों वर्षों तक जलते ही रहे। इटली देश का एक किसान खेत में काम कर रहा था। काम करतेकरते उसका फावड़ा एक स्थान पर अटक गया। आस-पास से खोदना शुरू किया। वहां एक दरवाजा दिखाई दिया। दरवाजे को तोड़ा। जब वह उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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