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________________ अस्तित्व की खोज : सम्यग्दर्शन देखने की क्षमता है । आवरण हट चुका है । किन्तु अन्तराय कर्म के क्षयोप-शम से होने वाली प्राण की ऊर्जा यदि साथ में नहीं मिलती है तो आंख के होते हुए भी आदमी देख नहीं सकता, कान के होते हुए भी वह सुन नहीं सकता और मन के होते हुए भी वह चिन्तन नहीं कर सकता । मस्तिष्क विकृत होने का अर्थ कि वहां प्राण की ऊर्जा समाप्त हो गयी है। आंख का गोलक साफ है, फिर भी दिखाई नहीं देता, इसका अर्थ है ज्योति के केन्द्र तक प्राण की धारा नहीं पहुंच रही है। कान का पर्दा फटा नहीं है, कान के सारे उपकरण ठीक हैं, फिर भी सुनाई नहीं देता । इसका तात्पर्य है कि श्रवण का जो केन्द्र है वहां तक प्राण की धारा पहुंच नहीं रही है । आदमी लकवे से ग्रस्त होता है । इसका अर्थ है कि शरीर के अमुक-अमुक भाग में रक्त का संचार रुक गया है। रक्त के संचार के रुकने का अर्थ है प्राण की धारा का रुकना, प्राण की धारा का अभाव । जहां प्राण की धारा नहीं पहुंच पाती वहां की सक्रियता नष्ट हो जाती है । प्राण की धारा के बिना न ज्ञान का उपयोग होता है और न दर्शन का उपयोग होता है । ज्ञानावरण के क्षयोपशम और दर्शनावरण के क्षयोपशम से पहले का क्षयोपशम होता है । अन्तराय का क्षयोपशम अर्थात् शक्ति की अन्तराय के क्षयोपशम के बिना अर्थात् प्राण ऊर्जा के बिना कोई नहीं हो सकता, सक्रियता नहीं आ सकती । अन्तराय प्राप्ति । भी कार्य सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि प्राण की ऊर्जा का प्रवाह किस ओर जा रहा है ? किस दिशा में बह रहा है ? यह दिशा परिवर्तन का प्रश्न है । यह रूपान्तरण का प्रश्न है । व्यक्ति चाहता है कि उसके व्यक्तित्व का रूपान्तरण हो । किन्तु रूपान्तरण तब तक घटित नहीं होता जब तक कि प्राण की धारा के प्रवाह को मोड़ा नहीं जाता । तब तक उसकी दिशा में परिवर्तन नहीं लाएंगे तब तक रूपान्तरण की बात घटित नहीं होगी ! ११ धर्मशास्त्रों और धर्माचार्यों ने जो धर्म का सूत्र दिया, साधना का सूत्र दिया, योग का सूत्र दिया वह केवल जानने के लिए नहीं दिया । कुछ लोग यह मानते हैं कि धर्म और दर्शन केवल जीवन का दर्शन देते हैं, मार्ग बतलाते हैं, किन्तु रूपान्तरण नहीं करते | यह भ्रान्त धारणा है । कोई भी साधना का सूत्र जीवन को नहीं बदलता और केवल तत्व की ही बात बतलाता है तो वह सही अर्थ में धर्म का सूत्र नहीं होगा, अध्यात्म का सूत्र नहीं होगा, साधना का सूत्र नहीं होगा। समाज व्यवस्था के परिवर्तन की बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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