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किसने कहा मन चंचल है
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करने वाले हैं । ये इन्द्रियों को भी संचालित करते हैं और मन को भी संचालित करते हैं। ये चैतन्य केन्द्र अनेक हैं । सात भी हैं और सात सौ भी हैं । और भी अधिक हो सकते हैं । उनको संतुलित करना, उनकी क्रियाओं को संचालित करना, साधना का मुख्य अंग है । यह कार्य चैतन्य- केन्द्र की प्रेक्षा द्वारा किया जा सकता है । प्रेक्षा दर्शन का नया आयाम होगा । हम दर्शन के सैद्धान्तिक रूप को हजारों वर्षों से मानते आ रहे हैं । किन्तु दर्शन को जीवन में जीना यह है दर्शन का नया आयाम । इसके द्वारा अनेक नई दृष्टियां उपलब्ध हो सकती हैं ।
हमें अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास कर मोह के वलय को तोड़ना है । हमें लेश्या - ध्यान का अभ्यास कर परिणाम-धारा को शुद्ध करना है । अब हम अपने अनुष्ठान के प्रति सर्वात्मना समर्पित होकर जुट जाएं ।
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