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आजादी की लड़ाई
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बाहुबली और भरत के युद्ध की परिणति क्या हुई ? बाहुबली अपने निश्चय पर अटल है । स्वतंत्रता की सुरक्षा करने का अदम्य उत्साह और स्फूर्त भावना ने उसे विजयी बना दिया । भरत की विशाल सेना हार गयी । व्यक्तिगत युद्ध में भी भरत को पराजित होना पड़ा। बाहुबली विजयी हो
गया ।
जो भी साधक अपने निश्चय पर अडिग रहता है, अपनी स्वतन्त्रता को बनाए रखने में प्रयत्नशील रहता है, जो सदा जागृत और अप्रमत्त रहता है वह मोह की सत्ता के सामने नहीं झुक सकता । एक दिन ऐसा आएगा, जिस दिन मोह की विशाल सेना परास्त होकर भाग जाएगी, नष्ट हो जाएगी । भरत चक्रवर्ती के पास एक चक्र था । वह देवताओं द्वारा उपासित और सेवित था । महान् पराक्रमी था वह एक । आपके पास भी एक चक्र है, शक्तिशाली चक्र है, वह है- प्रेक्षा । देखना, देखना और देखना । कुछ भी नहीं करना, केवल देखना है ।
जब भरत और बाहुबली के युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला तब यह प्रस्ताव आया कि सेनाओं में होने वाले युद्ध को बन्द कर दिया जाए । केवल भरत और बाहुबली लड़ें। दो की लड़ाई हो । जो जीतेगा, वह विजयी होगा । उस व्यक्ति युद्ध में एक था दृष्टियुद्ध । दोनों आमने-सामने खड़े हो जाएं । आंखों से एक-दूसरे को देखें । जो अपनी पलकें पहले झपकाएगा, वह पराजित घोषित होगा । दोनों आमने-सामने आ खड़े हुए |
हम भी उसी प्रकार के युद्ध में प्रवेश कर रहे हैं । प्रेक्षा का अर्थ है - दृष्टियुद्ध | भीतर में देखना, अप्रमत्तभाव से देखते जाना । प्रेक्षा दृष्टियुद्ध है । हम प्रेक्षा करें, भीतर की गहराइयों में उतरें। वहां क्रोध, मान, माया, राग, द्वेष, उन्माद, वासना और विकार के स्फुलिंग उछलते नजर आएंगे । हम उनको अपलक दृष्टि से देखें, केवल देखें, देखते रहें । वे स्वयं भाग जाएंगे । आपको हाथापाई नहीं करनी पड़ेगी। वे स्वयं भाग जाएंगे । दृष्टि का अस्त्र बहुत शक्तिशाली होता है। प्रेक्षा एक शक्तिशाली अस्त्र है । जो साधक दृष्टियुद्ध में पारंगत हो जाता है, जो देखना जान जाता है, समझ जाता है वह कभी परास्त नहीं हो सकता । जो भी सामने आएगा, वह परास्त हो जाएगा । प्रेक्षा का अस्त्र बहुत तीक्ष्ण और मर्मवेधी होता है । वह सामने वाले को समूल नष्ट कर देता है |
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