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कसने कहा मन लचचं है
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है । उठते बैठते, चलते, फिरते, रेल में या हवाई जहाज में सफर करते समय भी यह किया जा सकता है । यदि हमारा यह क्रम बन जाता है तो
मन की भूमिका सुचारू रूप से संचालित हो सकती है । मिट जाती है कि मन बहुत भटक रहा है । जाता है । यह मन की पहली भूमिका है ।
तब यह शिकायत मन का भटकाव समाप्त हो
दूसरी भूमिका है - अमन की । यह अमन-चैन की भूमिका है । केवल अमन-चैन | शब्द का ही ऐसा योग मिल गया – अमन के साथ चैन जुड़ गया । अमन की अवस्था चैन की अवस्था है । मन आलंबन के साथ चलता है । चलते-चलते जब वह आलंबन की एकाग्रता और स्थिरता के बिन्दु पर पहुंच जाता है तब मन की गति लड़खड़ाने लग जाती है, टूटने लग जाती है, मन वहां समाप्त हो जाता है, अमन की स्थिति प्राप्त हो जाती है ।
जब हम लेश्या - ध्यान का प्रयोग करते हैं और जैसे ही यह ज्योति प्रकट होती है तब कुछ चमकीला पदार्थं दीखने लगता है । जब भीतर के स्पंदन जागते हैं, लेश्याओं के स्पंदन जागते हैं तब ये तरंगें हमारे सामने आती हैं । एक ऐसा प्रसाद बरसने लगता है कि मन खो जाता है, कहीं नहीं रहता । साधक दूसरी स्थिति में चला जाता है । यदि मन उपस्थित रहता है. तब काल का बोध हुए बिना नहीं रहता । काल का अबोध अमन की स्थिति
ध्यान में बैठता है किन्तु उसे
अनुभूति अमन की स्थिति में
।
अमन की स्थिति कालातीत
में ही हो सकता है । व्यक्ति एक घंटा तक लगता है कि पांच-दस मिनट ही हुए हैं । यह ही हो सकती है, मन की स्थिति में नहीं स्थिति है । अमन की स्थिति देशातीत स्थिति है । जागरूकता से देखना, जानना । वह कालातीत या देशातीत नही हो सकता । अमन की स्थिति में न कोई विकल्प आता है, न चिन्तन आता है, कुछ भी नहीं आता । मन के सारे कार्य समाप्त हो जाते हैं ।
मन का काम है काल को
अमन की स्थिति सहज प्राप्त नहीं होती । यह साधना से प्राप्त होती है । इसके लिए लंबी प्रतीक्षा और साधना करनी पड़ती है ।
आज के युग की सबसे बड़ी कठिनाई है कि आदमी प्रतीक्षा करना नहीं चाहता । वह तत्काल फल चाहता है । आज ही बीज बोया और आज ही उसका फल मिल जाए - यह उसका प्रयत्न रहता है । यह अधैर्य, प्रतीक्षा
न करने की वृत्ति, साधना का विघ्न है ।
साधना का सूत्र है — प्रतीक्षा करना, जल्दबाजी न करना । जल्दबाजी
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