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सत्य को स्वयं खोजें
हमने सत्य की खोज प्रारंभ की है। मनुष्य-जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है-सत्य की खोज । प्राणी-जगत् में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो सत्य की खोज कर सकता है । दूसरे सारे प्राणी, फिर चाहे वे पशु-पक्षी हों या देवता, कोई भी सत्य की खोज नहीं कर सकता । मनुष्य के पास जितना विकसित मस्तिष्क, विकसित ग्रन्थियां और अतीन्द्रियज्ञान के केन्द्र हैं, उतने दूसरे किसी भी प्राणी के पास नहीं हैं। इसीलिए मनुष्य ही सत्य की खोज कर सकता। बहुत अच्छा हुआ कि हमने इस रहस्य को समझ लिया, इस सचाई को जान लिया। हमने मनुष्य होने की सार्थकता को पहचान लिया. कि मनुष्य-जीवन का सार है-सत्य की खोज, सत्य की उपलब्धि ।
भगवान महावीर ने कहा--"अप्पणा सच्च मेसेज्जा-अपने-आप सत्य की खोज करो।"
हम सत्य की खोज के लिए प्रस्तुत हैं। सत्य खोजना है और स्वयं को ही खोजना है। ऐसा नहीं होता कि एक व्यक्ति सत्य खोजे और दूसरा उपयोग करे । वैज्ञानिक जगत् में यह होता है कि एक व्यक्ति सत्य को खोजता है और सारा जगत् उसका उपयोग करता है। किन्तु अध्यात्म का संसार इससे भिन्न है। इस जगत् में जो व्यक्ति सत्य को खोजता है, वही उसका उपभोग करता है, वही उस उपलब्धि से आनन्द को प्राप्त करता है। "जिन खोजा तिन पाइयां-यह है अध्यात्म के संसार की बात । 'जिन नहीं खोजा तिन नहीं पाइयां'-यह है अध्यात्म के संसार की बात । जो खोजेंगे, वे पाएंगे। जो नहीं खोजेंगे, वे कभी नहीं पाएंगे।
वैज्ञानिक जगत् की खोज दूसरे के पूरी काम आती है। अध्यात्मजगत् की खोज दूसरे के पूरी काम नहीं आती। वाणी के माध्यम से, वचन के प्रयोग से उपलब्धि को दूसरे को बताते हैं, दूसरे सुनते हैं, पर वे उस उपलब्धि को तभी हस्तगत कर सकते हैं जब वे उस पथ पर चलते हैं, स्वयं खोज करते हैं और स्वयं ही उस सत्य का साक्षात् करते हैं ।
अध्यात्म के क्षेत्र में जो खोजें हुई हैं, अतीन्द्रियज्ञानियों ने जो खोजें
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