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________________ १५२ किसने कहा मन चंचल है की सार्थकता समझते हैं । प्रयोजनवश कोई प्रवृत्ति होती है, तो वह सार्थक मानी जा सकती है । प्रयोजन के लिए सोचना पड़े तो वह समझ में आ सकता है । किन्तु यह नहीं कि व्यक्ति सोचता ही रहे। अधिक सोचना तनाव पैदा करता है। मन भारी हो जाता है। ध्यान के द्वारा हम इस पर नियंत्रण पा सकते हैं । हम उतना ही सोचें जितना आवश्यक है। जरूरत पूरी होते ही सोचने का दरवाजा बंद कर दें, चिन्तन बंद कर दें। मन शांत हो जाएगा । उज्जैन चातुर्मास की घटना है । आगम-कार्य प्रारंभ करने की योजना बन चुकी थी। मैंने सोचा-बहुत विशाल कार्य है। समय-साक्षेप और श्रम-साध्य । इस दीर्घकालीन कार्य के लिए कुछ विशेष तैयारी अपेक्षित है। हम निरन्तर एक ही कार्य नहीं कर सकते। अनेक कार्यों में समय लगाना होता है अतः मैंने एक व्यवस्था सोची। दिन के तीन भाग कर दिए । एक भाग ज्ञान की आराधना के लिए, एक भाग दर्शन की आराधना के लिए और एक भाग चारित्र की आराधना के लिए। मैंने तीन घंटे का समय चारित्र की आराधना के लिए निश्चित किया। चारित्र की आराधना अर्थात् अपनी साधना । चारित्र का अर्थ है-आनन्द । चारित्र और आनन्द दो नहीं, एक ही हैं। वह चारित्र नहीं हो सकता जिसकी अनुभूति आनन्द नहीं है। ज्ञानाराधना अर्थात् आगमों का पारायण । तीन घंटा आगम कार्य में लगाना । आगम के विषय में जो कुछ करना है वह इन तीन घण्टों के समय में करना और शेष समय में इसकी स्मृति से भी मुक्त हो जाना। तीसरी है-सम्यग्दर्शन की आराधना । इस विभाग में मुझे जो कुछ नया लिखना होता, कुछ भी निर्माण करना होता, वह मैं करता। पूरे दिन को तीन भागों में बांटने के साथ-साथ मैंने इसके साथ एक महत्त्वपूर्ण बात और जोड़ दी कि जब एक कार्य का समय पूरा हो जाए, तब उसकी बिल्कुल विस्मृति कर, दूसरे काम में लग जाना । दूसरा काम करते समय पूर्व कार्य की स्मृति ही नहीं करना । जब मैं एक कार्य पूरा कर उठता हूं तब सोचता हूं-'यह काम पूरा हो गया।' अगले दिन क्या करना है, कोई चिन्ता नहीं, कोई स्मृति नहीं । मानो कि वह काम आज ही पूरा हो गया हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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