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________________ १२० किसने कहा मन चंचल है को नहीं जानता, वह चमत्कार की भ्रान्तियों में पलता रहता है। योग कोई चमत्कार नहीं है। यह सामान्य प्रक्रिया है । यह अध्यात्म विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया है । इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं होता। मनुष्य शरीर से काम लेता है, वाणी से काम लेता है और मन से काम लेता है। योग में कुछ नया करना नहीं होता। शरीर, वाणी और मन से काम लिया जाता है। किन्तु वहां एक बात स्पष्ट समझ लेनी होती है कि किनकिन कारणों से शक्ति सुप्त रहती है और किन-किन कारणों से वह जागती है ? जिन-जिन कारणों से वह सुप्त रहती है, क्षीण होती है, उन कारणों को रोकना होता है। जिन कारणों से वह निद्रित रहती है, उन कारणों को रोकना होता है, जिन कारणों से वह निद्रित रहती है, उन कारणों को नष्ट करना होता है। इतना करने से योग सध जाता है, हमें केवल संतुलन स्थापित करना पड़ता है। शरीर से काम लेना है, किन्तु ऐसी स्थिति भी आनी चाहिए कि शरीर से कोई काम न लें। शरीर से प्रवृत्ति करनी है तो शरीर से निवृत्ति भी करनी है। प्रवृत्ति और निवृत्ति का संतुलन । वाणी से काम लेना है तो मौन भी करना है। वाक् और मन का संतुलन । सोचना है तो नहीं भी सोचना है। चिंतन और अचितन का संतुलन । ___ इस संतुलन के स्थापित होते ही योग सध जाता है। इससे शक्तिजागरण का मार्ग खुल जाता है। शक्ति को क्षीण करने के मार्ग बंद हो जाते हैं। सक्रियता को अवरुद्ध करते ही शक्ति का व्यय रुक जाता है । शक्ति अजित होने लगती है और भीतर विस्फोट होने लगता है। शक्ति जाग उठती है। • अपनी शक्तियों से परिचित होना, सूक्ष्म की शक्तियों से परिचित होना-यह शक्ति-जागरण का पहला सूत्र है। ० शक्ति के स्रोतों में संतुलन स्थापित करना-यह शक्ति जागरण का दूसरा सूत्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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