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प्रवचन ११ ।
संकलिका
• जीवन की दो धाराएं--(१) शक्तियुक्त धारा (२) शक्तिशून्य धारा । • शक्ति अविकसित ० शक्ति अप्रयुक्त । • शारीरिक शक्ति-जो प्राणशक्ति शरीर के माध्यम से प्रकट । • मानसिक शक्ति-जो प्राणशक्ति मन के माध्यम से प्रकट ।
शक्ति प्रत्येक पदार्थ में
चेतन में चेतना, आनन्द और शक्ति का समन्वय । • मनुष्य विकसित चेतना वाला अतः शक्ति का विकास कर सकता है। विकसित शक्ति खतरनाक : उसका सम्यक् उपयोग, उसका दिशा
दर्शन अध्यात्म द्वारा । • हम सूक्ष्म से परिचय प्राप्त करें। • शक्ति जागरण का पहला सूत्र--सूक्ष्म की शक्ति से परिचित होना। स्थूल शरीर की सूक्ष्म रचना० मस्तिष्क में १ खरब न्यूरॉन । ० ज्ञान-तंतु-एक लाख मील लंबे। • कोशिकाएं-साठ अरब । शक्ति विकास के तीन आयाम० शक्ति को जगाना। • शक्ति को संभालना। • शक्ति का सही उपयोग करना । अध्यात्म-योग के तीन उपाय० प्रवृत्ति और निवृत्ति का संतुलन । • चिंतन और अचिंतन का संतुलन । • वाक् और मौन का संतुलन ।
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