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किसने कहा मन चंचल है
'प्रतिशत भाग ये दोनों काल खा जाते हैं। आदमी मुश्किल से समय के दस प्रतिशत भाग में वर्तमान में रह पाता है। अतीत भी वास्तविक नहीं है और भविष्य भी वास्तविक नहीं है। अतीत मात्र स्मृति है और भविष्य मात्र कल्पना है । वास्तविक है वर्तमान । उसमें आदमी बहुत कम रहता है। वह या तो स्मृति में उलझा रहता है या कल्पना के मधुर स्वप्न देखता है। वर्तमान उसके हाथ से छूट जाता है। वह उसे पकड़ ही नहीं पाता । वास्तविकता यह है कि जो कुछ घटित होता है, वह होता है वर्तमान में । किन्तु आदमी उसके प्रति जागरूक नहीं रहता । भाव क्रिया का अर्थ हैवर्तमान में रहना। ... भावक्रिया का दूसरा अर्थ है-जानते हुए करना । हम जो भी करते हैं वह पूरे मन से नहीं करते । मन के टुकड़े कर देते हैं। काम करते हैं, पर मन कहीं भटकता रहता है। वह काम के साथ जुड़ा नहीं रहता। काम होता है अमनस्कता से । वह सफल नहीं होता।
कार्य के प्रति सर्वात्मना समर्पित हुए बिना उसका परिणाम अच्छा नहीं आता। इसमें शक्ति अधिक क्षीण होती है, अनावश्यक व्यय होती है और काम पूरा नहीं होता । अतः हम जिस समय जो काम करें उस समय हमारा शरीर और मन-दोनों साथ-साथ चलें। दोनों की सहयात्रा हो।
___ भावक्रिया का तीसरा अर्थ है-सतत अप्रमत्त रहना । साधक को ध्येय के प्रति सतत अप्रमत्त और जागरूक रहना चाहिए। ध्यान का पहला ध्येय है-चित्त की निर्मलता। चित्त को हमें निर्मल बनाना है । ध्यान का दूसरा ध्येय है। इनके प्रति शक्तियों को जागृत करना हमारी ध्यान-साधना के दो ध्येय हैं। इनके प्रति सतत जागरूक रहना भावक्रिया है।
उपसंपदा का दूसरा सूत्र है-क्रिया करना, प्रतिक्रिया न करना। आदमी प्रतिक्रिया का जीवन जीता है । वह कपड़ा पहनता है, ओढ़ता है, इसलिए कि उसे सर्दी लगती है, उसे लज्जा को ढकना है । अतः कपड़ा पहनना या ओढ़ना भी प्रतिक्रिया है, क्रिया नहीं। आदमी खाता है। वह भी प्रतिक्रिया है, क्रिया नहीं। भूख लगती है, पेट में पीड़ा होती है, उसे शांत करने के लिए आदमी खाता है। हमारा खाना, पीना, कपड़े पहनना आदि सारी प्रतिक्रियाएं हैं। ये सब स्वतंत्र क्रियाएं नहीं हैं, प्रतिक्रियाएं हैं । हम प्रतिक्रिया का जीवन न जीएं, क्रिया का जीवन जीएं । अध्यात्म-साधना का
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