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१०. उपसंपदा
साधना-केन्द्र साधना का स्थल है । यहां साधक खाली आते हैं और भरकर जाते हैं या यों कहें कि भरे हुए आते हैं और खाली होकर जाते हैं। दोनों बातें संभव हैं। जो भरकर आए हैं उन्हें खाली होकर जाना है और जो खाली होकर आए हैं, उन्हें भरकर जाना है। अध्यात्म-साधना खाली होने का भी प्रयत्न है और भरने का भी प्रयत्न है। जो वमनीय है, जो परित्याग के योग्य है उसे छोड़ना है और जो भरने योग्य है उसे भरना है।
साधना प्रारंभ करने से पूर्व सब प्रेक्षा-ध्यान की उपसंपदा स्वीकार करें । सभी साधक सुखासन में बैठ, बद्धांजलि होकर सुनें । शरीर शिथिल, मन तनावमुक्त रहे । मैं कुछ सूत्रों का उच्चारण करूंगा। आप उसी लय में उनका प्रत्युच्चारण करें
'अब्भुटिओमि आराहणाए।' मैं प्रेक्षा-ध्यान की आराधना के लिए उपस्थित हुआ हूं। 'मग्गं उवसंपज्जामि ।' मैं अध्यात्म-साधना का मार्ग स्वीकार करता हूं। 'सम्मत्तं उवसंपज्जामि।' मैं अन्तर्दर्शन की उपसंपदा स्वीकार करता हूं। 'संजम उवसंपज्जामि ।' मैं आध्यात्मिक अनुभव की उपसंपदा स्वीकार करता हूं।
यह प्रेक्षा-ध्यान की उपसंपदा है । इसके पांच सूत्र हैं। इसका पहला सूत्र है-भावक्रिया। इसके तीन अर्थ हैं
१. वर्तमान में जीना। २. जानते हुए करना । ३. सतत अप्रमत्त रहना।
पहली बात है-वर्तमान में जीना । हमारा अधिकांश समय अतीत की उधेड़बुन में या भविष्य की कल्पना में बीतता है। समय का नब्बे
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