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किसने कहा मन चंचल है
इसका हमें बोध होना चाहिए । चैयन्यमय आत्मा सबसे बड़ा सार है।
इस जगत् का सबसे बड़ा सार तत्त्व हमारे शरीर के भीतर है । उसके दर्शन से जैविक-रासायनिक परिवर्तन होते हैं। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को रसायन बदलते हैं । नाड़ी-संस्थान पर नियंत्रण स्थापित होता है। मूर्छा टूटती है और चैतन्य जागृत होता है । आत्मा का अस्तित्व किसी शरीर के माध्यम से प्रकट होता है। जो शरीर को देखना नहीं जानता, उसके अन्तर्भाव में अवस्थित चैतन्य केन्द्रों का दर्शन करना नहीं जानता, वह अपने अस्तित्व को भी नहीं जानता । जिसे अपने अस्तित्व का बोध नहीं होता उसे दायित्व का बोध नहीं होता। प्रेक्षा-ध्यान की निष्पत्तियां
व्यावहारिक
आध्यात्मिक
प्रज्ञा जागृत होती है।
• दीर्घ श्वास-प्रेक्षा से
प्राण-ऊर्जा जागृत होती है • समवृत्तिश्वास-प्रेक्षा से
नाड़ी-संस्थान शुद्ध होता है । • देह-प्रेक्षा से
रासायनिक क्रिया बदलती है। स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव होता है। कायोत्सर्ग सेदेह की जड़ता नष्ट होती है।
संकल्पशक्ति जागती है। प्रज्ञा जागती है। मूर्छा टूटती है। चैतन्य जागृत होता है।
चैतन्य और पुद्गल का भेद-ज्ञान स्पष्ट होता है। सुख-दुःख में मध्यस्थता आती है।
हल्कापन आता है।
मति की जड़ता नष्ट होती है। अनुप्रेक्षा सेसूक्ष्म विद्युत् उत्पन्न होती है। व्यवहार का परिवर्तन होता है ।
प्रज्ञा जागती है। सघन मूर्छा टूटती है।
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