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________________ व्यक्ति आगमतः द्रव्यावश्यक है, बहुवचन इसे मान्य नहीं है। संग्रहनय में द्रव्य की अपेक्षा से एकत्व का ग्रहण है ऋजुसूत्र के अनुसार पर्याय एक क्षण में एक ही होती है इस अपेक्षा से एक द्रव्यावश्यक मान्य है। शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत इन तीनों नय का मन्तव्य है कि जो जानता है वह उपयुक्त भी होता है। जो व्यक्ति जानता है और उपयुक्त नहीं हो ऐसा हो ही नहीं सकता। अतः ये तीनों आगमतः द्रव्यावश्यक के अस्तित्व को ही मान्य नहीं करते हैं। भाव निक्षेप पदार्थ का वर्तमान पर्यायाश्रित व्यवहार भाव निक्षेप है। 'विवक्षितक्रियापरिणतो भाव। विवक्षित क्रिया में परिणत वस्तु को भाव निक्षेप कहा जाता है। जैसे स्वर्ग के देवों को देव कहना। भाव निक्षेप भी आगमतः, नोआगमतः के भेद से दो प्रकार का है। आगमतः-उपाध्याय के अर्थ को जानने वाला तथा उस अनुभव में परिणत व्यक्ति को आगमतः भाव उपाध्याय कहा जाता है। नो आगमतः-उपाध्याय के अर्थ को जानने वाला तथा अध्यापक क्रिया में प्रवृत्त व्यक्ति को नोआगमतः भाव उपाध्याय कहा जाता है। वर्तमान पर्याय से उपलक्षित द्रव्य भाव कहलाता है। भाव निक्षेप पर भी आगम और नोआगम इन दो दृष्टिकोणों से विचार किया गया है। जो 'आवश्यक' को जानता है, उसमें उपयुक्त है, वह ज्ञानात्मक पर्याय की अपेक्षा भाव आवश्यक है। इसी प्रकार जो मंगल शब्द के अर्थ को जानता है तथा उसके अर्थ में उपयुक्त है वह ज्ञानात्मक पर्याय की अपेक्षा भाव मंगल है। इस विमर्श के अनुसार घट शब्द के अर्थ को जानने वाला और उसमें उपयुक्त पुरुष भाव घट कहलाता है। ___ घट पदार्थ का ज्ञाता एवं उपयुक्त पुरुष भी भाव घट है तथा घट नाम का पदार्थ जो जल आहरण आदि क्रिया कर रहा है वह भी भावघट है। चारों ही निक्षेपों को संक्षेप में व्याख्यायित करते हुए कहा है 'नाम जिणा जिन नामा ठवणजिणा हुँति पडिमाओ। दव्वजिणा जिन जीवा भाव जिणा समवसरणत्था ॥' नय और निक्षेप का सम्बन्ध नय और निक्षेप का विषय-विषयी सम्बन्ध है। आचार्य सिद्धसेनदिवाकर व्रात्य दर्शन - ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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