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प्रयोग की निर्दोष प्रणाली है। निक्षेप के रूप में जैन परम्परा का भाषा जगत् को महत्त्वपूर्ण अवदान है। निक्षेप की परिभाषा
ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि निक्षेप पद्धति का प्रयोग, निक्षेप शब्द का प्रयोग उसके भेद-प्रभेदों का उल्लेख भगवती, अनुयोगद्वार, नियुक्ति साहित्य आदि में उपलब्ध है किन्तु निक्षेप की अर्थ मीमांसा, निर्वचन, परिभाषा आदि सर्वप्रथम विशेषावश्यक भाष्य में उपलब्ध है। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण निक्षेप का निर्वचन करते हुए कहते हैं
निक्खप्पइ तेण तहिं तओ व निक्खेवणं व निक्खेवो। नियओ व निच्छिओ वा खेवो नासो त्ति जं भणियं ॥
विभा., ६१२ अर्थात् पद को निश्चित अर्थ में स्थापित करना-अमुक-अमुक अर्थ के लिए शब्द का निक्षेपण करना निक्षेप है। वह क्षेपण नियत या निश्चित होता है अतः उसे न्यास कहा जाता है।
अनुयोगद्वार चूर्णि में अर्थ की भिन्नता के विज्ञान को निक्षेप कहा है-'निक्खेवो अत्थभेदन्यासः' । भाष्यकार ने निक्षेप की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा-जिस वस्तु के नाम आदि भेदों में शब्द (वाचक) अर्थ (वाच्य) और बुद्धि (ज्ञान) इन तीनों की परिणति होती है, वह निक्षेप है। सम्पूर्ण वस्तुएं लोक में निश्चित ही नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार पर्यायों से युक्त हैं।
नामाइ भेयसद्दत्थबुद्धिपरिणमभावओ निययं । जं वत्थुमत्थि लोए चउपज्जायं तयं सव्वं ॥
विभा., ७३ निक्षेप जैनदर्शन का पारिभाषिक शब्द है। निक्षेप का पर्यायवाची शब्द न्यास है जिसका प्रयोग तत्वार्थसूत्र में हुआ है। न्यासो निक्षेपः। निक्षेप की जैन ग्रन्थों में अनेक परिभाषाएं उपलब्ध हैं। बृहद् नयचक्र में निक्षेप को परिभाषित करते हुए कहा गया
जुत्ती सुजुत्तमग्गे जं चउभेयेण होइ खलु ठवणं।
वज्जे सदि णामादिसु तं णिक्खेवं हवे समये ॥ ६६ . व्रात्य दर्शन
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