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________________ करने का सामर्थ्य भाषा में नहीं है। इसी समस्या के समाधान में जैन चिंतकों ने स्याद्वाद सिद्धान्त को प्रकट किया। स्याद्वाद के द्वारा सत्य का आपेक्षिक कथन होता है जिससे समस्या का समाधान प्राप्त होता है। स्याद्वाद का उद्गम स्थल अनेकान्तात्मक वस्तु है। अनेकान्तात्मक वस्तु के यथार्थ ग्रहण के लिए अनेकान्त दृष्टि है। स्याद्वाद उसको वाणी द्वारा व्यक्त करने की पद्धति है। स्याद्वाद स्वरूप एवं परिभाषा अनेकान्तात्मक वस्तु के प्रतिपादन की शैली को स्याद्वाद कहा जाता है। यह जैन दर्शन की तत्त्व प्रतिपादन की विशिष्ट शैली है। 'अनेकान्तात्मकार्थकथनं स्याद्वादः' अनेकान्तात्मक वस्तु का प्रतिपादन स्याद्वाद के माध्यम से ही हो सकता है। आचार्यश्री तुलसी ने श्रीभिक्षुन्यायकर्णिका में स्याद्वाद को परिभाषित करते हुए लिखा है अर्पणानर्पणाभ्यामनेकान्तात्मकार्थप्रतिपादनपद्धतिः स्याद्वादः प्रधानता एवं गौणता के द्वारा अनेकान्तात्मक वस्तु का प्रतिपादन करने वाली पद्धति स्याद्वाद कहलाती है। स्याद्वाद स्यात् और वाद इन दो शब्दों से निष्पन्न है। स्यात् का अर्थ है दृष्टिकोण-विशेष या अपेक्षा-विशेष और वाद का अर्थ है कथन या प्रतिपादन। इस प्रकार स्याद्वाद का अर्थ होगा सापेक्ष प्रतिपादन। 'स्यात्' पद में भ्रान्ति 'स्यात्' शब्द के अर्थ के संदर्भ में जितनी भ्रान्ति दार्शनिकों की रही है सम्भवतः उतनी भ्रान्ति अन्य किसी शब्द के सम्बन्ध में नहीं रही है। विद्वानों द्वारा हिन्दी भाषा में स्यात् का अर्थ, शायद, सम्भवतः, कदाचित् और अंग्रेजी भाषा में Probable, may be, perhaps, some how आदि किया है और इन्हीं अर्थों के आधार पर स्याद्वाद को संशयवाद, सम्भावनावाद, अनिश्चयवाद समझने की भूल होती रही। आद्य शंकराचार्य से लेकर आधुनिक युग तक के विद्वान इसके अर्थ निरूपण में भ्रामक रहे हैं। जैन आचार्यों ने स्यात् शब्द का प्रयोग एक विशिष्ट पारिभाषिक अर्थ में किया है। यदि स्याद्वाद के आलोचक विद्वानों ने स्याद्वाद सम्बन्धी किसी मूल ग्रन्थ का पारायण किया होता तो यह भ्रान्ति सम्भवतः उनको नहीं होती। २८ • व्रात्य दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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