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________________ हैं? परस्पर उनका क्या सम्बन्ध है इत्यादि विभिन्न संदर्भो में विज्ञान चर्चा कर रहा है। डी. एन. ए., आर. एन. ए., जीन आदि की विस्तृत चर्चा शरीर विज्ञान में प्राप्त है। शरीर के संदर्भ में ऐसी सूक्ष्म चर्चा प्राचीन ग्रन्थों में प्राप्त नहीं है। विज्ञान के द्वारा शरीर से सम्बन्धित अनेकों तथ्य प्रकाश में आये हैं जो अद्यप्रभृति अज्ञात थे किंतु विज्ञान का केन्द्रभूत विश्लेपणीय स्थल यह औदारिक शरीर ही है। स्थूल शरीर के अतिरिक्त अन्य शरीर की अवधारणा विज्ञान में नहीं है, यद्यपि विज्ञान भी शरीर में उष्मा, विद्युत् शक्ति को स्वीकार करता है किंतु जैन मान्य तैजस शरीर जैसी अवधारणा विज्ञान में नहीं है। कुछ वैज्ञानिक सूक्ष्म शरीर की प्राक्कल्पना कर रहे हैं किंतु अभी तक उसका अस्तित्त्व सिद्ध नहीं हो पाया है। जबकि धर्म-दर्शन के क्षेत्र में सूक्ष्म शरीर की अवधारणा सर्वमान्य है। संभव है भविष्य में विज्ञान भी धर्मदर्शन की अवधारणा में सहमत हो जाये। संदर्भ: १. उत्तराध्ययन २३/७३ २. सर्वार्थसिद्धि २/३६/३३ ३. धवला १३/५/५ जस्स कम्मस्स उदएण आहारवग्गणाए पोग्गलखंधा तेजाकम्मइयवग्गणपोग्गल खंधा च सरीरजोग्गपरिणामेहि परिणदा संता जीवेण संबझंति तस्स कम्मखंधस्स शरीरमिदि सण्णा। ४. जैन सिद्धान्त दीपिका ७२४ सुखदुःखानुभवसाधनं शरीरम्। ५. तत्वार्थसूत्र २/४५ निरुपभोगमन्त्वयम् ६. तत्वार्थसूत्र २/३८ तेषां परं परं सूक्ष्मम्। ७. जै. सि. दी. वृ. ७२५ स्थूलपुदगलनिष्पन्नं रसादिधातुमयम् औदारिकम् । ८ धवला ६/१ रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रवर्तते। मेदसोऽस्थि ततो मज्जा मज्जः शुक्रं ततः प्रजा ॥ ६. अनुहा. वृ. पृ. ८७ तित्थगरगणधरसरीराइं पडुच्च उदारं, उदारं नाम प्रधानम्। १०. अनुहा वृ. पृ. १७ उरालं नाम विस्तरालं, विशालं ति वा जं भणिते होति कहं सातिरेगजोयणसहस्समवठ्ठियप्पमाणमोरालियं अण्णमेदहमित्तं णत्थि । वेउव्वियं होज्जा लक्खमहियं, अवट्टियं पंचधणुसते, इमं पुण अवट्टितपमाणं अतिरेग जोयणसहस्सं। ११. अनुहा वृ. पृ. ८७ उरलं नाम स्वल्पप्रदेशोपचितत्वाद् बृहत्त्वाच्च भिण्डवत् । व्रात्य दर्शन + २१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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