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२३. जैन परम्परा में मान्य पांच शरीर : एक विश्लेषण
संसारी आत्मा सशरीर एवं सिद्ध आत्मा शरीर मुक्त होती हैं। संसारावस्था एवं शरीर परस्परापेक्ष हैं। शरीर के बिना संसार एवं संसार के विना शरीर नहीं होता है। संसार का भोग शरीराधीन है। शरीर की भोगायतनता सर्व प्रसिद्ध है। भारतीय दार्शनिक परम्परा में इस दृश्यमान स्थूल शरीर के अतिरिक्त सूक्ष्म शरीर की अवधारणा भी है। संसार परिभ्रमण का हेतु मुख्य रूप से सूक्ष्म शरीर को ही माना गया है। स्थूल शरीर को सापेक्ष दृष्टि से धर्म की साधना का निमित्त स्वीकार किया गया है
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्
धर्म का प्रथम साधन यह स्थूल शरीर है। इसके अभाव में साधक साधना के मार्ग पर आरूढ़ ही नहीं हो सकता है। भगवान महावीर ने संसार समुद्र से पार पाने के लिए शरीर को नौका माना है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है
सरीरमाहु नाव त्ति जीवो वुच्चई नाविओ ।
संसारो अण्णवो वुत्तो जंतरंति महेसिणो ॥ अंग्रेजी भाषा में शरीर को Body कहा जाता है। Body शब्द के अर्थ को प्रस्तुत करते हुए शब्दकोश में लिखा गया Body = whole physical structure of a human being or an animal." इस वाक्यांश से ज्ञात होता है कि मात्र मनुष्य अथवा पशु के ही शरीर होता है अन्य के नहीं जबकि जैन परम्परा में तथा जैनेतर भारतीय परम्परा में संसार-स्थित, विकसित, अल्पविकसित एवं अविकसित सभी प्राणी शरीरधारी हैं। मनुष्य, पशु, पक्षी से लेकर कीट पतंग, वृक्ष, हवा, पानी, अग्नि, पृथ्वी आदि सभी के शरीर माना गया है। देवयोनि एवं नरकयोनि जो हमारे प्रत्यक्ष का विषय नहीं है। वे भी शरीर युक्त हैं।
२०० . व्रात्य दर्शन
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