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________________ में ऊर्जा की अविनाशिता के नियम का विश्वास है। कर्म-सिद्धान्त के अनुसार नैतिकता के क्षेत्र में आने वाले वार्तमानिक समस्त मानसिक, वाचिक एवं कायिक कर्म भूतकालीन कर्मों से प्रभावित होते हैं और भविष्य के कर्मों पर अपना प्रभाव स्थापित करने की क्षमता से युक्त होते हैं। प्रो. हिरियन्ना के अनुसार-'कर्म-सिद्धान्त का आशय यही है कि नैतिक जगत् में भी भौतिक जगत् की भांति, पर्याप्त कारण के बिना कुछ घटित नहीं हो सकता। यह समस्त दुःख का आदि-स्रोत हमारे अस्तित्व में अन्वेषित कर ईश्वर और प्रतिवेशी के प्रति कटुता निवारण करता है। अतीतकाल, वर्तमान व्यक्तित्व का एवं वर्तमान भविष्य के व्यक्तित्व का विधायक है। कर्मवाद आचार-शास्त्र की समस्याओं को समाहित कर उसमें पूर्णता सम्पादित करता है। भारतीय चिन्तकों ने कर्म-सिद्धान्त की स्थापना के द्वारा नैतिक क्रियाओं के फल की अनिवार्यता प्रकट करने के साथ ही उनके पूर्ववर्ती कारकों एवं अनुवर्ती परिणामों की व्याख्या भी प्रस्तुत की तथा सृष्टि के वैषम्य का सुन्दरतम समाधान भी किया है। संदर्भ १. आवश्यक सूत्र ४/१ २. आचारांग १/१७४ ३. वही १/७-८ ४. वही १/४ ५. मनन मूल्यांकन, पृ. ५ ६. तत्त्वार्थ १/२ सम्यग्दर्शनशानचारित्राणि मोक्षमार्गः। ७. आचा. २/६३ सव्वे पाणा पियाउया सुहसायादुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविणो जीविउकामा। ८ भगवती ७१६० जे निज्जिण्णे से सुहे। ६. सूत्रकृतांग १/१/१ १०. दशवैकालिक सूत्र ४/७ कहं चरे कहं चिट्ठे कहमासे कहं सए। कहं भुज्जतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई ॥ ११. दशवैकालिक सूत्र ४/८ जयं चरे जयं चिठे जयमासे जयं सए। जयं भुंजतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई ॥ १२. तत्वार्थ ६/११ व्रात्य दर्शन • ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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