________________
भरने लगा। एक से दो हो गये। दूध में और पतलापन आ गया। राजा ने कहा-बात क्या है ? दूध और पतला हो गया। राजा ने फिर मंत्री से परामर्श कर एक और अधिकारी को नियुक्त कर दिया। अब तीन घर भरने लगे, दूध पतला होता चला गया, पानी ज्यादा डाला जाने लगा। जहां एक का स्वार्थ पूरा होता था वहां तीनों के स्वार्थ पूरे होने लगे। अधिकारियों की नियुक्ति होती गई और दूध भी उसी अनुपात में पतला होता गया। एक दिन यह स्थिति आई-दूध में पानी नहीं किन्तु पानी में दूध मिलाया जाने लगा। यदि राजा दो-तीन अधिकारी और नियुक्त करता तो शायद दूध की सफेदी भी समाप्त हो जाती।
परार्थ और परमार्थ का गुरुत्वाकर्षण जब स्वार्थ की चेतना प्रबल बन जाती है और अधिकारियों पर अधिकारियों की नियुक्तियां बढ़ती चली जाती है तब दूध पतला होता चला जाता है। क्या आज यही स्थिति नहीं हो रही है ? एक कार्य के लिए न जाने कितने अधिकारीयों की नियुक्ति होती है किन्तु फिर भी कार्य ठीक से संचालित नहीं हो रहा है। जब तक मूल बात नहीं बदलेगी, स्वार्थ की चेतना नहीं बदलेगी, स्वार्थ, परार्थ और परमार्थ-इनका संतुलन नहीं होगा, तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। ध्यान करने वाले व्यक्ति का सम्बन्धों के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण बनेगा, वह सम्बन्ध को स्वार्थ की दृष्टि से अस्वस्थ नहीं बनाएगा, प्रत्येक सम्बन्ध को शालीनता से देखेगा, परार्थ और परमार्थ की चेतना के आधार पर भी देखेगा। जहां परार्थ और परमार्थ का गुरुत्वाकर्षण है वहां सब ग्रह अपने-अपने स्थान पर चलेंगे। पूरा समाज इस एक गुरुत्वाकर्षण से बंधा रहेगा तो वह अस्त-व्यस्त नहीं होगा। ध्यान करने वाले व्यक्ति सम्बन्ध शुद्धि का विकास करें, यह आवश्यक है।
रहस्य व्यवहार की पवित्रता का भाव शुद्धि, विचार शुद्धि, चर्या शुद्धि, अर्थ शुद्धि और संबंध शुद्धि-ये पांच ध्यान के फल हैं। भाव शुद्धि और विचार शुद्धि विकसित होगी तो व्यवहार जगत् में ये तीन शुद्धियां विकसित होंगी-चर्या की शुद्धि, आर्थिक शुद्धि और सम्बन्ध शुद्धि। इन पांच शुद्धियों के समुद्र का नाम है-ध्यान।
८४ / विचार को बदलना सीखें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org