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है, सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं।
ध्यान करने वाले व्यक्ति में स्वार्थ की भावना प्रबल नहीं बन पाएगी। उसमें स्वार्थ, परार्थ और परमार्थ-तीनों संतुलित हो जाते हैं। उसमें यह विवेक होता है कि इतना स्वार्थ साधना है, इतना परार्थ. साधना है-दूसरे के लिए कुछ करना है और इतना परमार्थ करना है। स्वार्थ, परार्थ और परमार्थ तीनों का संतुलन रहेगा तो सामाजिक सम्बन्ध कभी बिगड़ नहीं पाएंगे। सम्बन्ध तब बिगड़ते हैं, जब परार्थ और परमार्थ की भावना बिल्कुल सो जाती है। जब केवल स्वार्थ की भावना जागृत होती है तब सम्बन्धों में बिखराव आ जाता है। आज ऐसा लगता है-स्वार्थ भावना को अतिरिक्त महत्त्व दे दिया गया इसीलिए अनैतिकता और अप्रामाणिकता बढ़ी है। दूध पतला क्यों हुआ ? घटना पुरानी है किन्तु आज की स्थिति की बहुत संवादी है। एक राजा के मन में विचार आया-मेरे राज्य में बहुत गरीब बच्चे हैं। उनके लिए दूध बहुत जरूरी है। मैं ऐसा प्रयत्न करूं, जिससे बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था हो जाए। राजा समर्थ था। उसने पांच बड़ी-बड़ी गायें खरीदीं। एक-एक गाय बीस-बीस सेर दूध देने वाली थी। सब गरीब बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था हो गई। उनके ऊपर ग्वाले को देख-रेख के लिए रख दिया। कुछ दिन तक बच्चों को गाढ़ा दूध मिलता रहा। चार-पांच मास बाद दूध पतला होने लगा। ग्वाले के मन में स्वार्थ की भावना प्रबल बन गई। उसने सोचाअच्छा अवसर है, क्यों नहीं, मैं दूध घर ले जाऊं। ग्वाले ने तीस-चालीस किलो दूध अलग कर लिया और उसमें इतना पानी मिला दिया। दूध पतला होना ही था। एक दिन राजा ने देखा-दूध पतला है। उसने ग्वाले से कहा-दूध पतला कैसे है ? ग्वाले ने कहा-जैसा गायें देती हैं, वैसा ही है, मैं क्या करूं। गाय अगर सघन दे तो सघन होगा और पतला दे तो पतला होगा। गायें दूध पतला ही देती हैं तो गाढ़ा कहां से होगा ?
राजा ने सोचा-बात ठीक नहीं है। मंत्री से सलाह की। मंत्री ने कहा-एक अधिकारी की नियुक्ति कर दें। राजा ने उस पर एक और अधिकारी को नियुक्त कर दिया। वह अधिकारी भी स्वार्थ से मक्त नहीं था। उसने कुछ दिन तो सम्यक् देख-भाल की फिर अधिकारी का घर भी
जागरूकता और जीवन व्यवहार / ८३
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