________________
करता है, वह बिल्कुल अपवित्र है, दिल से काला है। हमारे दिल की पहचान आर्थिक शुद्धि से होती है और आर्थिक शुद्धि हमारे भावों की शुद्धि का हेतु बनती है। संबंध शुद्धि तीसरी बात है-सम्बन्धों की शुद्धि। समाज में जितने सम्बन्ध हैं, वे बिल्कुल स्वस्थ बनें, यह अपेक्षित है। समाज का मतलब क्या है ? सम्बन्धों का नाम ही समाज है। पिता, पुत्र, भाई-भाई, मालिक-कर्मचारी-ये जो सम्बन्ध हैं, इन सम्बन्धों की व्याख्या ही तो समाज है। वैसे हर आदमी अलग-अलग है, किन्तु सब परस्पर सम्बन्धों से जुड़ गए और एक समाज बन गया। समाज का एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसको हम विसम्बन्ध कह सकें ? सम्बन्ध मुक्त कोई नहीं है, सब सम्बन्धों से जुड़े हुए हैं। जो हजार कोस की दूरी पर बैठे हैं, पांच हजार किलोमीटर की दूरी पर बैठे हैं, वे भी सम्बन्धों से जुड़े हुए हैं। पिता हिन्दुस्तान में बैठा है, लड़का कनाडा, अमेरिका या रूस में बैठा है। क्षेत्रीय दूरी बहुत है पर बीच में सम्बन्ध का सूत्र जुड़ा हुआ है। पुत्र मानता है-मेरा पिता वहां है और पिता मानता है-मेरा पुत्र वहां है। दोनों के बीच स्नेह के सम्बन्ध का धागा जुड़ा हुआ है, वह टूटता नहीं है। सम्बन्धों की यह एक व्यूह रचना है और इसका नाम है समाज। सम्बन्धों की शुद्धि ध्यान का सहज प्रतिफल है।
स्वार्थ, परार्थ और परमार्थ आज सम्बन्धों की बड़ी समस्या है। सम्बन्ध शुद्ध नहीं रहे। इसका कारण है-स्वार्थ और भेदनीति। ये सम्बन्धों को बिगाड़ देते हैं। दो भाई हैं। एक-दूसरे का स्वार्थ अलग-अलग है। मैंने सैकड़ों परिवारों में देखा है-एक भाई ज्यादा काम करता है, दूसरा कम करता है। एक को काम मिला, दूसरे को नहीं मिला। जिसके कमाई ज्यादा है वह अलग से अपना घर बसा लेता है। कुछ वर्षों के बाद इतना तनाव होता है कि घर में ही अलग चूल्हे नहीं जलते, दिमाग में भी अलग चूल्हे जलने लग जाते हैं। भाई-भाई में परस्पर इतना वैमनस्य होता है कि दुश्मनों के भी उतना नहीं होता। वे एक-दूसरे को सहन नहीं कर सकते। थोड़ी-सी बात होती है और टकराव हो जाता
८२ / विचार को बदलना सीखें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org