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एक अमीर व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ा। मजदूरों में बात पहुंची-आज मालिक को दिल का दौरा पड़ गया। एक मजदूर ने कहा- अरे ! झूठी बात तो नहीं है ? दूसरे ने कहा - 'नहीं, बिल्कुल सच्ची बात है । मैं अभी वहीं से आ रहा हूं। उनके परिवार के सब लोग चिन्तातुर बने हुए हैं। डॉक्टर भी कह रहा था - हार्ट अटैक हुआ है ।
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पहले व्यक्ति ने दूसरे के कथन का उपहास करते हुए कहा - ' अरे ! भाई ! उसके दिल तो था ही नहीं। दिल का दौरा कहां से पड़ गया ? दिल होता तो दौरा पड़ने की बात समझ में आती।'
जो क्रूर व्यवहार करता है, दिल ही नहीं रखता, उसके दौरे की बात कहां से आएगी ? क्रूर व्यवहार या क्रूरता का जो प्रसंग है, वह धार्मिक या ध्यान करने वाले आदमी में हो नहीं सकता। उसके मन में प्राणी मात्र के प्रति करुणा जागनी चाहिए। कम से कम मनुष्य के प्रति तो करुणा जागे ही। पहले मनुष्य के प्रति जागेगी और विकास होते-होते प्राणी मात्र के प्रति करुणा जाग जाएगी ।
करुणा का विकास
आर्थिक शुद्धि का पहला लक्षण है- करुणा का विकास। एक साधक किसी के प्रति क्रूर व्यवहार नहीं कर सकता। क्या इस स्थिति में मिलावट की बात सोची जा सकती है ? वह खाद्य वस्तु में मिलावट की बात कैसे सोच सकता है ? वह धोखाधड़ी कैसे कर सकता है ? वह किसी के प्रति अन्याय कैसे कर सकता है ? किसी का गला कैसे घोंट सकता है ? वह अपनी लेखनी को छुरी कैसे बना सकता है ? यह कलम है, छुरी नहीं - सेठ के इस कथन पर किसान यदि यह टिप्पणी करता है - 'हमारे गले तो इसी से कटते हैं, तो मानना चाहिए - करुणा व्यवहार में घटित नहीं हुई है ।
आर्थिक शुद्धि होने पर कलम किसी के लिए छुरी नहीं बन सकती, व्यक्ति किसी का शोषण नहीं कर सकता ।
सहयोग और सहानुभूति का भाव
जो ध्यानी होता है, उसमें सहयोग और सहानुभूति की भावना जागती है । वह केवल अपने स्वार्थ के लिए नहीं जीता। किन्तु जो असमर्थ हैं, पिछड़े
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जागरूकता और जीवन व्यवहार / ७६
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