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रेखा है ? हम कैसे पहचान सकते हैं कि यह ध्यानी है, धार्मिक है और यह धार्मिक नहीं है ? भगवान् ने बहुत थोड़े में उत्तर दिया-अन्नहा णं पासह परिहरेज्जा-जो पश्यक है, द्रष्टा है, जिसने सचाइयों को जानना, देखना शुरू कर दिया है, उसका सारा व्यवहार अन्यथा होगा। वह आम आदमी की तरह नहीं चलेगा। वह बोलेगा, खाएगा तो देखने वाले को पता लग जाएगा कि कितनी जागरूकता से काम कर रहा है, कितनी जागरूकता से चल रहा है। रुकते क्यों हैं ? पिलानी की घटना है। पूज्य गुरुदेव चल रहे थे, साथ में जुगलकिशोर बिड़ला भी चल रहे थे। बिड़लाजी चलते-चलते बात करते जा रहे थे। जब गुरुदेव को उनकी बात का उत्तर देना होता, गुरुदेव रुक जाते। दो-चार बार ऐसा हुआ। बिड़लाजी ने पूछा- 'महाराज ! क्या आपके पैर में दर्द है ? आप चलते-चलते रुक क्यों जाते हैं ? गुरुदेव बोले-'बिड़लाजी ! दर्द नहीं है। यह हमारी जागरूकता है, गमनयोग है। जब बोलना पड़े तो ठहर जाएं, न बोलना पड़े तो चलते जाएं।'
चलना और बोलना-दोनों साथ में नहीं हो सकते। जब बोलना है तो ठहर जाना है और जब नहीं बोलना है तो चलते जाना है। एक गृहस्थ चलते हुए बात करता है किन्तु एक साधक चलते हुए बात नहीं करता। उसका व्यवहार भिन्न हो जाएगा, बदल जाएगा, उसके बोलने और सोचने में भी जागरूकता आ जाएगी।
संन्यासी का आशीर्वाद राजा के घर एक संन्यासी आया। वह कछ दिन रुककर जाने लगा। राजा बोला-महाराज ! जाते-जाते आप कोई आशीर्वाद दीजिए। संन्यासी ने आशीर्वाद दिया- 'एक बात का अभ्यास करना, क्रोध आए, उस समय कोई काम मत करना। यह मेरा आशीर्वाद है।' संन्यासी चला गया। राजा ने उस बात को पकड़ लिया। समय बीत गया। राजा बड़ा जागरूक है उस आशीर्वाद के प्रति। राजा के कोई पत्र नहीं था। समस्या थी राजगद्दी किसे सौंपे ? आखिर चिन्तन करते-करते निर्णय लिया-कन्या को राजगद्दी सौंप
७६ / विचार को बदलना सीखें
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