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चर्या शुद्धि जब आदमी भीतर से बदलता है तब दो शुद्धियां घटित होती हैं-भाव शुद्धि
और विचार शुद्धि। ये दोनों स्व तक सीमित हैं। ध्यान का तीसरा परिणाम है-चर्या शुद्धि। प्रातःकाल जागरण से लेकर और रात्रिकाल सोने तक उसकी चर्या शुद्ध हो जाएगी, नींद और जागरण की चर्या बदलेगी, चर्या की शुद्धि होगी। चर्या की शुद्धि में पहला तत्त्व है जागरण, जागने के बाद शारीरिक क्रिया करना। जहां शारीरिक क्रिया का प्रश्न है वहां स्वच्छता की बात आएगी। वह ऐसा कोई भी कार्य नहीं करेगा, जिससे गन्दगी बढ़े, अस्वच्छता बढ़े। यदि स्वच्छता की बात समझ में नहीं आती है तो धर्म की बात कैसे समझ में आएगी ? जिस व्यक्ति को स्वच्छता की बात समझ में नहीं आए-गन्दगी नहीं बढ़ाना है, प्रदूषण नहीं बढ़ाना है, वह आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नरक, परलोक, पुनर्जन्म जैसे सूक्ष्म और गढ तत्त्व कैसे समझ पाएगा ? जिसने छोटी बातों को नहीं समझा, वह बड़ी बात को कैसे समझ पाएगा ? बहुत लोग बड़ी-बड़ी सूक्ष्म बातें कर लेते हैं कि आत्मा कहां है ? परमात्मा कहां है ? ऐसा लगता है-ये कोरी रटी-रटाई बातें हैं। ये जिज्ञासाएं, ये प्रश्न सहज नहीं हैं। जो प्रश्न चेतना के विकास में से निकलता है, वह प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण होता है किन्तु जो प्रश्न सुना-सुनाया, पढ़ा-पढ़ाया या रटा-रटाया होता है, उस प्रश्न का कोई बहुत मूल्य नहीं
होता।
व्यवहार द्रष्टा का ध्यान करने वाले व्यक्ति में चर्या शुद्धि की बात जागती है। वह अपनी
ओर से वातावरण में गन्दगी पैदा नहीं करेगा। आज प्रदूषण का ज्वलंत प्रश्न है। एक धार्मिक आदमी, ध्यान की साधना करने वाला व्यक्ति इसके प्रति जागरूक रहेगा, वह सोचेगा-मेरे द्वारा प्रदूषण का बढ़ना हिंसा का बढ़ना है। ध्यान करने वाला व्यक्ति हिंसा को बढ़ावा देना नहीं चाहता। वह सारे दिन की चर्या-सोना, बैठना, उठना, बात करना आदि सब कुछ जागरूकता से करता है।
भगवान् महावीर के सामने प्रश्न आया-एक साधक धर्म की आराधना करता है और एक धर्म की आराधना नहीं करता है, दोनों में क्या भेद
जागरूकता और जीवन व्यवहार / ७५
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