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________________ जागरूकता और जीवन व्यवहार दो आदमी लड़ रहे थे। एक का शरीर कमजोर था, एक का शरीर बहुत मजबूत था, वह कमजोर को पछाड़ रहा था। आखिर लड़ाई शान्त हो गई। जो कमजोर व्यक्ति था, उसके पास एक आदमी आया, नमस्कार किया। उसने कहा- 'तुम मेरे साथ ही रहते हो, पहले कहां चले गए ? 'मैं तो यहीं खड़ा था।' 'क्या कर रहे थे ? 'लड़ाई देख रहा था। दो आदमी लड़ रहे थे।' । 'दो कौन ? मैं ही तो था, जो एक मुनि हूं। मुझे तुमने पहचाना नहीं। 'मुनिवर ! आदमी की पहचान तो उसके व्यवहार से होती है। मुनि कोई ऐसे लड़ते हैं ? मैंने सोचा-कोई दो लड़ाकू आदमी लड़ रहे हैं। मैं कैसे सोचूं कि यह मुनि लड़ रहा है।' पहचान से व्यवहार अपने भीतर कौन कैसा है, यह पता चलना तो बहुत कठिन बात है। किन्तु व्यवहार जैसा सामने आता है, उसके आधार पर व्यक्ति को पहचाना जाता हमारी पहचान का सबसे बड़ा साधन बनता है व्यवहार। हम बाहर में कैसे प्रकट होते हैं ? हमारी अभिव्यक्ति क्या होती है ? हम दूसरे के प्रति, पदार्थ के प्रति, वस्तु के प्रति, व्यक्ति के प्रति कैसा व्यवहार करते हैं ? उस व्यवहार में हमारा पूरा व्यक्तित्व झलक जाता है। ___ एक आदमी बगीचे के भीतर चल रहा है और जगह-जगह गन्दगी फैलाता चल रहा है। फूलों को तोड़ रहा है। बिना मतलब पेड़-पौधे, जागरूकता और जीवन व्यवहार / ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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