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जायेगी ? जर्मनी फिर द्वितीय महायुद्ध से पूर्व की स्थिति में लौट आयेगा ? किन्तु ऐसा हुआ। जर्मनी को लौटना पड़ा। सत्तर वर्ष पुराना रूस का साम्यवाद लौट गया। आज यूरोप की सारी स्थितियां फिर से बदल रही हैं। कोई पचास वर्ष बाद लौट रहा है, कोई सत्तर वर्ष बाद। दुनिया में ऐसा परिवर्तन होता है, हो रहा है, जिससे सारी मान्यताएं ही ध्वस्त होती जा रही हैं। आज के वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि काल केवल आगे ही नहीं
आता, पीछे की ओर भी लौटता है। आज शायद काल का पुनरावर्तन हो रहा है। काल केवल भविष्य ही नहीं बनता, कभी-कभी अतीत भी बन जाता है। आज शायद अतीत की दिशा में काल जा रहा है। यहां तक कि जिसे हम प्रगति कहते हैं, वह प्रतिगति हुए बिना प्रगति नहीं बनती। आज जो प्रगति हो रही है, वह फिर अतीत की ओर मुड़ रही है। राजस्थान में चौधरानियां जो वेशभूषा पहनती थीं, कालान्तर में वह गायब-सी हो गयी। आज फिर से वह नये फैशन के रूप में लौट रही है। जो प्रगति होती है, वह प्रतिगति होकर फिर लौटती है। आज जो पुरानी बातें वापस आ रही हैं, उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है-एक दिन जरूर ऐसा आयेगा, जिस दिन यह टी. वी. के प्रति जो अंधाधुध आकर्षण पैदा हुआ है, उससे विरक्ति भी पैदा होगी। आकर्षण इन्द्रिय जगत् में प्रश्न है दूरदर्शन का। इन्द्रिय जगत् में जाने वाला आदमी देखता रहा है
और उसमें उलझता रहा है। दो जगत् हैं-एक है इन्द्रियों का जगत् और दूसरा है इन्द्रिय से परे का जगत्, अन्तर्दर्शन का जगत्। आदमी इन्द्रिय जगत् में जीता है, इन्द्रियों के साथ जीता है। हमारा जितना बाह्य जगत् के साथ संपर्क स्थापित होता है, वह इन्द्रियों के माध्यम से होता है। एक आदमी अंधा, बहरा और गूंगा है। उसके लिए दुनिया बहुत छोटी बन जाती है। वह न सुन सकता है, न देख सकता है और न बोल सकता है। इन्द्रियां न हों तो दुनिया ही क्या ? सारी बाहरी दुनिया इन्द्रियों के माध्यम से ही हमारे काम आती है। कहा जा सकता है-जहां इन्द्रियां नहीं, वहां कुछ भी नहीं। जहां इन्द्रियों का जगत् है, वहां दर्शन की बात आयेगी। दर्शन दो भागों में बंट गया। एक पर का दर्शन और दूसरा स्व का दर्शन। इन्द्रिय
दूरदर्शन और अन्तर्दर्शन / ६७
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