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का युग इन्द्रियों की उच्छृखलता का युग है। इन्द्रिय-संयम को आज पुराने जमाने की बात कहा जा रहा है। आज मुक्तता की सर्वत्र चर्चा हो रही है। देश मुक्त हो, इतना ही नहीं, हर व्यक्ति मुक्त हो, ऐसी बात कही जा रही है। मुक्त यौनाचार की भी हिमायत हो रही है। पश्चिमी देशों ने वैज्ञानिक प्रगति तो बहुत की है, किन्तु इन्द्रिय संयम की अवहेलना भी उसी अनुपात में की है। आज उसके परिणाम सामने आ रहे हैं। हिन्दुस्तान में उतनी भयंकर बीमारियां आज प्रचलित नहीं हो पायी हैं, जितनी पश्चिमी देशों में। अभी यहां उतना पागलपन नहीं है, जितना वहां है। जहां मुक्त यौनाचार होगा, इन्द्रियों की उच्छृखलता होगी, इन्द्रियों के प्रति संयम बरतना पुराने जमाने की बात मानी जायेगी, वहां बीमारियों का तेजी से बढ़ना स्वाभाविक है और आज वैसा ही हो रहा है। एड्स जैसी बीमारी पश्चिमी देशों की ही देन है। सात-आठ वर्ष पहले कुछ गिनती के रोगी एड्स से ग्रस्त पाये गये थे हिन्दुस्तान में। आज इस देश में भी एड्स से संक्रमित रोगियों की संख्या हजारों-लाखों में है।
केवल भोग का ही नहीं, हर चीज का संयम होना चाहिए। आंख का संयम बहुत आवश्यक है। किन्तु समाज इसके प्रति भी जागरूक नहीं है। एक टी. वी. का ही उदाहरण लें। बच्चे प्रारंभ से ही टी. वी. के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। यह आंख का आकर्षण है। परिणाम यह आता है-जो बच्चा प्रारंभ से ही टी. वी. का शौकीन है, उसकी सबसे पहले शिक्षा के प्रति गंभीरता समाप्त हो जायेगी, दायित्वबोध कम हो जायेगा। टी. वी. सामने है तो सारे दायित्व उसके सामने गौण हो जाएंगे। स्कूल का होमवर्क पूरा करने का तो प्रश्न ही नहीं है। साक्षी है इतिहास यदि इन्द्रिय की उच्छृखलता इसी प्रकार बढ़ती रही तो निश्चय ही एक दिन वह स्थिति बनेगी-शासक या राजा तो महल में बैठा भोग में लीन है और शत्रु आक्रमण कर उसके राज्य को हड़पते चले जा रहे हैं। ऐसा हिन्दुस्तान के इतिहास में हुआ है। राजा महल में बैठा रंगरेलियां करता रहा और दुश्मन ने सत्ता हथिया ली। राजा को बन्दी बनाकर अपने साथ ले गये। ऐसे विलासी और व्यसनी शासक हिन्दुस्तान में हुए हैं। यह दायित्वहीनता
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