SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदमी शराब पीये और लीवर खराब न हो, यह संभव ही नहीं है। लोग इसके दुष्परिणाम को जानते हैं, फिर भी नशा करते हैं। आज मादक द्रव्यों का सेवन इतना बढ़ता जा रहा है, इतनी तस्करी हो रही है मादक द्रव्यों की कि आने वाले समय की भयावहता का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। समाचार-पत्र में पढ़ा-ट्रक में ऊपर चार सौ पेटियां सेब की और उसके नीचे हशीश की पांच पेटियां। तस्करी का यह फलता-फूलता धंधा विश्वव्यापी बन गया है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है आज की युवापीढ़ी। नशे की यह लत स्वास्थ्य को तो चौपट करती ही है साथ ही साथ व्यक्ति का चारित्रिक पतन भी करती है। जिसने नशे की लत पकड़ ली, उसमें शेष सब बुराइयां स्वतः आ जाएंगी। समृद्ध विरासत जो व्यक्ति अपनी समस्याओं के प्रति, अपने जीवन के प्रति जागरूक है, वह कभी नशे की ओर नहीं जा सकता। यह जागरूकता आज की अपेक्षा है। जैन समाज के सामने तो यह बहुत बड़ी अपेक्षा है। जो समाज अपनी कुछ विशेषताओं के कारण विकसित हुआ था, आगे बढ़ा था, उसे आज उन विशेषताओं को यथावत् रखना है। जैन समाज आज आर्थिक संपन्नता की दृष्टि से ही नहीं, किन्तु चारित्रिक दृष्टि से, खानपान की दृष्टि से भी अपनी एक अलग पहचान रखने वाला समाज है। अगर उस समाज में भी इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियां प्रवेश करती हैं तो यह चिंतनीय बात है। जैन समाज मांसाहारी नहीं, विशुद्ध शाकाहारी समाज है, व्यसनों से दूर रहने वाला समाज है। उसकी पहचान ही इस बात से है कि जैन मांस नहीं खाते, शराब नहीं पीते। आज के इस संक्रामक युग में जैन समाज और उसकी आने वाली पीढ़ी इन दुर्व्यसनों के प्रति जागरूक नहीं रहती है तो न केवल वह अपनी पहचान खोयेगी, अपितु अपनी अस्मिता भी खोयेगी। हर जाति को अपनी विरासत की चिंता होती है। जैनों की अपनी एक समृद्ध विरासत रही है और उसे हर स्थिति में सुरक्षित रखना है। इन्द्रिय की उच्छृखलता स्वास्थ्य का तीसरा बिन्दु है-इन्द्रियों की उच्छृखलता पर नियंत्रण। आज धर्म और स्वास्थ्य / ५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy