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बात को पकड़ा गया-सबसे पहले हम उपाधि की चिकित्सा करें, कषाय की चिकित्सा करें। अगर इनकी चिकित्सा होती है तो मानसिक चिकित्सा अपने आप हो जायेगी। बहुत सारे मनश्चिकित्सक हमारे पास आते हैं। वे भी परेशान हैं। एक मनश्चिकित्सक ने कहा-'महाराज ! हम मानसिक रोगी को कंपोज देते हैं, ट्रैक्वेलाइजर्स देते हैं, शामक औषधियां देते हैं, किन्तु इनसे वह पूरी तरह ठीक नहीं होता। एक बार स्वास्थ्य थोड़ा उपलब्ध होता है, किन्तु बीमारी फिर से उभर कर सामने आ जाती है। क्या किया जाए ? मैंने कहा-'जिस मूल बात को पकड़ना चाहिए था, आपने उसे नहीं पकड़ा, दूसरे को पकड़ लिया। आप पकड़ें भावना को। अगर भावना के स्तर पर चिकित्सा होती है तो फिर कंपोज और ट्रॅक्वेलाइजर की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यह बात प्रेक्षाध्यान के शिविरों में बहुत बार प्रमाणित हो चुकी है।
तुलसी अध्यात्म नीडम् में ध्यान का शिविर चल रहा था। बीकानेर का एक डॉक्टर शिविर में आया। उसने बताया-वह आल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट तथा बम्बई, बड़ौदा आदि के अनेक बड़े अस्पतालों में अपना इलाज करा चुका है, किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। उस शिविर में उसने सात दिन तक प्रेक्षाध्यान का प्रयोग किया। आठवें दिन वह वहां से बिल्कुल स्वस्थ होकर गया। ऐसे एक नहीं, अनेक प्रयोग हुए हैं और हमने देखा है-जटिल से जटिल स्थिति भी सामान्य हुई है। जो महिला प्रतिदिन अनेक कंपोज की गोलियां खा जाती थी, प्रेक्षाध्यान के तीन दिन के प्रयोग से ही नींद की गोलियां और अन्य टेबलेट्स खाने की आदत छूट गयी। यह कोई जादू नहीं है बल्कि प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों का परिणाम है। मादक द्रव्यों से बचें स्वास्थ्य का दूसरा बिन्दु है-मादक द्रव्यों से बचना। आज बहुत सारी बीमारियां नशे की आदत के कारण हो रही हैं। हम लोग गुजर रहे थे सिविल लाइन्स से। एक हास्पिटल आया। पट्ट पर लिखा था-'तम्बाकू जिम्मेदार है फेफड़े की बीमारी के लिए। तम्बाकू जिम्मेदार है हार्ट अटैक के लिए। तम्बाकू जिम्मेदार है कैंसर के लिए। लोग जानते भी हैं कि तम्बाकू से कैंसर की बीमारी होती है, फेफड़ा खराब हो जाता है, हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है। शराब जिम्मेदार है लीवर को खराब करने के लिए।
५८ / विचार को बदलना सीखें
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