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असंतुलित संवेग आयुर्वेद के आचार्यों ने इस विषय पर बहुत प्रकाश डाला है कि किस प्रकार के संवेग से कौन-सी बीमारी पैदा होती है। आधुनिक मेडिकल साइंस और साइकोलाजी में भी इस पर बहुत विचार किया गया है। इस विषय पर नयी-नयी खोजें हो रही हैं कि संवेग कितनी बीमारियां पैदा करते हैं। आज तो इसकी एक स्वतंत्र शाखा बन गयी है'साइकोसोमेटिक डिसीज- मनोकायिक बीमारियां। जितनी भी मनोकायिक बीमारियां हैं, वे सब मानसिक और भावात्मक परिस्थिति के कारण पैदा होती हैं।
रोग का सबसे बड़ा कारण है असंतुलित संवेग। स्वास्थ्य का पहला सूत्र है संवेगों को संतुलित करना, अनुशासित करना। हम इस संदर्भ में देखें-धर्म का पहला सूत्र क्या है ? आचार्यों ने बार-बार कहा'कषायमुक्तिः किलमुक्तिरेव'-कषाय से मुक्ति ही मुक्ति है। क्रोध, मान, माया, लोभ, घृणा, ईर्ष्या-द्वेष, कामवासना-ये जितने संवेग हैं, इनसे मुक्त होने का नाम ही मुक्ति है। जो स्वास्थ्य का सूत्र है, वही धर्म का भी सूत्र है। जो धर्म का सूत्र है, वही स्वास्थ्य का भी सूत्र है। यदि आप स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से विचार करें तो आपको धर्म पर आना ही होगा और धर्म की दृष्टि से विचार करें तो स्वास्थ्य पर आना ही होगा। स्वास्थ्य और धर्म जिस बिन्दु पर आकर मिलते हैं, वह बिन्दु है संवेग।
चिकित्सा उपाधि की ऐसा लगता है-आज के चिकित्साविज्ञानी और मनश्चिकित्सक भी कुछ भ्रान्ति में हैं। वे लोग मानसिक तनाव को ज्यादा महत्त्व देते हैं, मानसिक बीमारियों को ज्यादा महत्त्व देते हैं। यह बात सही नहीं है। बीमारी का मूल कारण जितना भावात्मक परिस्थितियां अथवा इमोशन्स हैं, उतना मानसिक या मेंटल प्राब्लम्स नहीं हैं। यह भावात्मक समस्या मानसिक समस्या से कहीं ज्यादा भयंकर है। वस्तुतः मानसिक समस्याएं भावात्मक समस्याओं से ही पैदा होती हैं। हमारे भाव जब मन पर उतरते हैं, मनोभाव बनते हैं, तब वे समस्याएं पैदा करते हैं। प्रेक्षाध्यान में इस
धर्म और स्वास्थ्य / ५७
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