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स्वास्थ्य अच्छा है, शरीर निरोग है तो सारे सुख आ जाते हैं। यदि स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो सुख के सारे साधनों के बावजूद व्यक्ति दुःख ही भोगेगा। प्रश्न है- 'क्या आप अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं ? यदि हैं तो मानना होगा-आपने ध्यान किया है। यदि स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं हैं, मूर्छा में हैं तो आपके लिए ध्यान करना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है। क्या आपने कभी स्वास्थ्य के बारे में सोचा है ? आप जानते हैं कि स्वास्थ्य का मूलमंत्र क्या है ? संभवतः सौ में पंचानवे व्यक्ति यह कभी नहीं सोचते कि स्वास्थ्य का मूलमंत्र क्या है ? स्वास्थ्य का रहस्य क्या है ? व्यक्ति स्वस्थ कैसे रह सकता है, इस पर प्रायः सोचा ही नहीं जाता।
संवेग का संतुलन प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में इस विषय पर बहुत चिंतन हुआ है कि स्वास्थ्य का मूल कारण क्या है ? पहला सूत्र क्या है ? स्वास्थ्य का पहला सूत्र है संवेग का संतुलन। जो व्यक्ति अपने संवेगों को संतुलित करना नहीं जानता, अपने आवेश पर कंट्रोल करना नहीं जानता, वह स्वस्थ नहीं रह सकता। यह तथ्य आज की वैज्ञानिक खोजों से प्रमाणित हो चुका है। प्राचीनकाल में आयुर्वेद के आचार्यों ने इस पर विस्तार से प्रकाश डाला था-अमुक रोग भय से पैदा होता है, अमक रोग क्रोध से पैदा होता है और अमुक रोग लोभ से पैदा होता है। आयुर्वेद के ग्रंथों में बताया गया है-जिसमें लोभ का संवेग ज्यादा होता है, उसमें अरुचि का रोग पैदा हो जाता है। उसे भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है। दिल्ली में पूज्य गुरुदेव हिन्दुस्तान के एक बड़े उद्योगपति की कोठी में ठहरे हुए थे। हमने उसका जीवन व्यवहार देखा-वह रोटी खाता है तो सुख से नहीं खाता। हर समय फोन की घंटियां बजती रहती हैं। गुरुदेव ने इस
ओर उसका ध्यान दिलाया तो उसने कहा-'महाराज ! रोटी तो मुझसे ज्यादा खायी ही नहीं जाती। मुश्किल से एक या दो रोटी खा पाता हूं। भूख ही नहीं लगती।' उसकी बात सुनकर आयुर्वेद का वह वाक्य याद आ गया-'लाभादरुचिः अग्निमान्धं चं।' अतिलोभ से अरुचि की बीमारी पैदा हो जाती है।
५६ / विचार को बदलना सीखें
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